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३१२. श्री रिचकी विदाईपर भाषण

यह गांधीजीके उस भाषणकी संक्षिप्त रिपोर्ट है जो उन्होंने रिचके[१] विदाई समारोह में जोहानिसबर्ग में दिया था।

[ मार्च ९, १९०५]

श्री गांधीने कहा कि वे श्री रिचके चरित्र के बारेमें और अपने दफ्तर में उनके वास्तविक कार्यके बारेमें अपने प्रशंसात्मक भाव प्रकट करना चाहते हैं। उन्होंने श्री रिचके साथ अपने सम्बन्धोंका इतिहास बताया और कहा कि हम दोनों भाई-भाई जैसे प्रेम-भावसे परस्पर आबद्ध रहे हैं। श्री रिचने पिछले साल प्लेगके समय बहुत आत्मत्याग दिखाया था और प्लेगसे पीड़ित भारतीयोंकी सेवा करनेके लिए बहुत जिद की थी। उन्होंने उसमें यह खयाल भी नहीं किया कि उनके ऊपर इसका सम्भावित परिणाम क्या होगा[२]। श्री गांधीने इसकी चर्चा विशेष जोर देकर की। उन्होंने अपना खयाल बताते हुए कहा कि श्री रिच जिस कारणसे स्वदेश लौट रहे हैं वह उनके ऊपर ईश्वरका अनुग्रह है और उन्हें इसमें कोई शक नहीं कि जो कुछ घटित हुआ है उसीमें उनका सर्वोत्तम हित होगा।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-३-१९०५
  1. लुई वॉल्टर रिचने १९०३ में अपना व्यवसाय छोड़ा और गांधीजीके मुन्शी हो गये। वे थियोसोफिस्ट थे और उन्होंने गांधीजीको थियोसोफिकल सोसाइटीसे परिचित कराया। वे सन् १९०५ में कानून पढ़नेके लिए इंग्लैंड गये और वहाँ दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंकी ओरसे पत्रोंमें बार-बार लेख लिखकर बहुत-सा अमूल्य काम करते रहे।
  2. इस घटना के सम्बन्धमें गांधीजीने बादमें लिखा: “श्री रिचका परिवार बड़ा था। वे खतरे में कूदनेके लिए तैयार थे; किन्तु उन्हें मैंने रोक दिया। मुझमें उनको खतरेमें डालने का साहस नहीं था। इसलिए उन्होंने खतरे के क्षेत्र से बाहरका काम संभाला” (आत्मकथा, भाग ४, अध्याय १५)। हम नहीं कह सकते कि इंडियन ओपिनियनमें उनके भाषणकी रिपोर्ट सही है या जब २० वर्ष बाद उन्होंने उक्त बात लिखी तब उनकी स्मृतिने उनका साथ नहीं दिया।