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राक्षसोंकी लड़ाई

दोष एक ही व्यक्ति अथवा एक ही परिवारमें नहीं है; बल्कि इससे समस्त भारतीय प्रजा दूषित है। इस प्रकार एक भारतीय युवकको असमय मुरझानेसे बचानेका सार्वजनिक प्रयास करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण काम है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-३-१९०५

३१५. राक्षसोंकी लड़ाई
जापान और रूस

रणक्षेत्र से जो खबरें आ रही हैं उनसे पता चलता है कि मुकदनके पास जापान और रूसके बीच आजकल जो लड़ाई चल रही है वह प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहासकी सबसे बड़ी लड़ाई गिनी जायेगी। मनको स्तब्ध करनेवाले समाचार अखबारोंमें बार-बार निकलते हैं। इससे जन-समुदायको इस प्रकारकी खबरोंके प्रति अरुचि पैदा होना स्वाभाविक है। इस वजहसे यदि इस समय मुकदनमें चालू लड़ाई बड़ीसे-बड़ी लड़ाई कही जाये तो सम्भवतः वह अत्युक्ति समझी जायेगी। फिर भी हमें यह बता देना चाहिए कि इन दिनों मुकदनकी लड़ाईमें, दोनों पक्षोंके लाखों मनुष्योंका संहार हो रहा है। इस जगह जापानने पूर्व, पश्चिम और दक्षिणकी ओरसे हमला किया है, अर्थात् रूसी सेनाके व्यूहपर हमला सामनेसे न करके पक्षोंसे किया है। इन पक्षोंके भंग हो जानेसे बीचका मोर्चा भी भंग हो जानेकी संभावना है।

इन सारी प्रवृत्तियोंके सूत्र संचालक जापानके वीर पुरुष माक्विस ओयामा हैं। रणक्षेत्रका विस्तार कोई सौ मील है, और उसमें दस लाख मनुष्य उतरे हैं। संहारके हथियारोंमें छोटीसे-छोटी रायफलोंसे लेकर बड़ीसे-बड़ी तोपेंतक काममें लाई जा रही हैं। मनुष्योंका संहार त्वरासे किस प्रकार किया जाये, इस सम्बन्धमें मानव-बुद्धि जो कुछ कर सकती है वह करनेमें जरा भी कसर नहीं छोड़ी गई है। हिम्मत और सहनशक्तिको कसनेमें कसर नहीं रहती। एक लाख मनुष्योंका संहार हो चुका है। अगर इस हमले में जापान रूसको हरा सका तो इस लड़ाईका अन्त सन्निकट है, ऐसा अनुमान करनेका प्रबल कारण है। रूसके हाथमें अब समुद्री ताकत नहीं है, क्योंकि पोर्टआर्थर निकल चुका है[१]। और खुश्कीके रास्ते मंचूरियामें अधिक मनुष्य भेजे जानेकी सम्भावना नहीं है। रूसमें लड़ाईके प्रति घृणा पैदा हो गई है। इसलिए जो फौज मंचूरियामें इस समय मौजूद है, वह हार जाये तो जापानको अधिक बलिदान देनेकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-३-१९०५
  1. अगस्त १०, १९०४ को।