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३१६. पत्र : दादाभाई नौरोजीको

२१-२४ कोर्ट चेम्बर्स
नुक्कड़, रिसिक व ऍडर्सन स्ट्रीट्स
पो० ओ० बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
मार्च १२, १९०५

सेवामें
माननीय दादाभाई नौरोजी
२२, केनिंगटन रोड
लंदन

प्रिय श्री दादाभाई, यह पत्र आपको जोहानिसबर्गके श्री एल० डब्ल्यू० रिचका परिचय दे सकेगा। श्री रिच और मैं कई बरसोंसे एक दूसरेको अच्छी तरह जानते हैं। श्री रिचके भारतीयोंके पक्षमें खूब निश्चित विचार हैं और कई बातोंके साथ भारतीय हितकी ज्यादा ठीक सेवा कर सकनेके खयालसे वे वैरिस्टरी पढ़ने इंग्लैंड रवाना हो रहे हैं। मैं बड़ी कृपा मानूँगा यदि आप अपनी सहायताका लाभ उन्हें दे सकें। श्री रिचने दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय प्रश्नका अध्ययन किया है।

आपका सच्चा
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (जी० एन० २२६६ ) से।

३१७. हिन्दू धर्म

[जोहानिसबर्ग
मार्च ११, १९०५]

श्री गांधीने शनिवार की शामको जोहानिसबर्ग थियोसॉफिकल लॉजके तत्त्वावधानमें मेसॉनिक टेम्पलमें हिन्दू धर्मपर दूसरा भाषण दिया। भवन खचाखच भरा था। पिछले भाषणका सारांश देनेके बाद वक्ताने कहा कि दूसरे भाषण में हिन्दू धर्मके उस कालका निरूपण किया जायेगा, जिसे उसका अद्वितीय युग कह सकते हैं। बुद्धके उपदेशोंके प्रभावसे जो आन्तरिक सुधार हुए उनके बाद हिन्दू धर्म मूर्तिपूजाका अत्यधिक अभ्यस्त हो गया। वक्ताने बातको निर्दोष दिखानेके लिए कई स्पष्टीकरण किये, किन्तु वे इस तथ्यको अस्वीकार नहीं कर सके कि हिन्दू दृश्य रूपमें लकड़ी-पत्थर जैसी जड़ चीजें पूजते हैं। हिन्दू दार्शनिक ईश्वरको सरलतासे शुद्धतम आत्माके रूपमें जानते और पूजते थे तथा अद्वैतवादके आधारपर उच्चतम कल्पनातक पहुँच जाते थे। इसी भाँति अज्ञानी जन-साधारण इससे निम्नतम अवस्थामें गिर जाते थे। यदि बाल-बुद्धि ईश्वरका अनुभव निर्गुण आत्माके रूपमें नहीं कर पाती