पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०३
हिन्दू धर्म

तो उसके विविध सगुण रूपोंके माध्यमसे उसको पूजने में उसे कोई कठिनाई नहीं होती। अनेक उसे सूर्य, चन्द्र और तारोंके माध्यमसे पूजते हैं और अनेक उसे लकड़ी-पत्थरके रूपमें भी पूजते हैं। दर्शन-प्रधान हिन्दू धर्मको सहिष्णु-भावनाके कारण पूजाका यह प्रकार अंगीकार करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। इस प्रकार हिन्दू जीवनका चक्र आनन्दसे चलता रहा। किन्तु तभी अरबके मरुस्थलमें एक ऐसी शक्ति उदित हुई जो विचारोंमें क्रान्ति उत्पन्न किये और जीवनपर अपनी स्थायी छाप छोड़े बिना रह नहीं सकती थी। मुहम्मद बचपनसे ही अपने आसपास के लोगोंको मूर्तिपूजा, विलासपूर्ण असंयम और शराबखोरीमें डूबा देखकर मन ही मन क्रोधसे सुलगते रहते थे। उन्होंने यहूदी धर्मको धराशायी और ईसाइयतको पतित देखा। उन्होंने मूसा और ईसाकी ही तरह अनुभव किया कि उनके पास एक दिव्य सन्देश है। उन्होंने संसारको अपना सन्देश देनेका निश्चय किया और पहले अपने कुटुम्बी-जनोंको उसका पात्र चुना। जो लोग इस्लामको तलवारका धर्म मानते हैं वक्ताने अपनेको उनसे अलग बताया और कहा कि वाशिंगटन इरविनने इस्लाम धर्मपर अपने ग्रंथ में प्रश्न उठाया है, "अपनी पहली अवस्थामें इस्लामके पास तलवार चलानेवाले लोग कहाँ थे?" उनके विचारमें इस्लामकी सफलताका कारण अधिकतर उसकी सादगी और मनुष्यकी कमजोरियोंकी स्वीकृति है। मुहम्मदने सिखाया कि ईश्वर एक और केवल एक है, और वे उसके पैगम्बर हैं। उन्होंने यह भी सिखाया कि आत्मोत्थानकारी प्रभावके रूपमें प्रार्थना नितान्त आवश्यक है। जो कर सकें ऐसे अपने समस्त अनुयायियोंको उन्होंने, वर्ष में भले ही एक बार, इकट्ठा होनेके लिए मक्काकी यात्राका विधान किया। और यह मानकर कि लोग धन-संग्रह करेंगे, उन्होंने अपने अनुयायियोंसे अनुरोध किया कि वे उसका एक निश्चित अंश दान कार्यके लिए धर्मबुद्धिसे अलग सुरक्षित कर दें। बहरहाल इस्लामकी मुख्य ध्वनि उसकी समताकी भावना थी। जो उसके दायरेमें आये उसने उन सबको ऐसे भावसे समान व्यवहार प्रदान किया जैसे भावसे संसारके किसी और धर्मने नहीं किया था। इसलिए जब ईसाके ९०० वर्ष बाद उसके अनुयाइयोंने भारतपर चढ़ाई की, तब हिन्दू धर्म किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। उसे ऐसा लगा कि इस्लामको सफलता मिलकर रहेगी। जातिभेदसे त्रस्त जनतापर समताके सिद्धान्तका प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता था। इस आन्तरिक शक्तिके साथ तलवारकी ताकत भी जोड़ दी गई। वे कट्टर हमलावर, जो समय-समयपर भारतमें आ घुसते थे, यदि समझा- बुझाकर सम्भव न होता तो तलवारके बलपर धर्म-परिवर्तन करने में हिचकते नहीं थे। मूर्तियोंपर मूर्तियाँ तोड़ते हुए उन्होंने लगभग सारा देश रौंद डाला और यद्यपि राजपूती शौर्य हिन्दुत्वकी ओर था, किन्तु वह इस्लामके अचानक हमलेसे उसकी रक्षा करनेमें असमर्थ रहा। प्रारम्भमें हिन्दू धर्मकी भावनाके अनुरूप दोनों धर्मोके समन्वयका प्रयत्न किया गया। वाराणसीमें लगभग १३वीं शताब्दीमें कबीर नामके एक सन्त हुए जिन्होंने हिन्दूधर्म के प्रधान सिद्धान्तोंको अक्षुण्ण रखकर और थोड़ा-बहुत इस्लामसे लेकर दोनों धर्मोके एकीकरणकी चेष्टा की, किन्तु उनका वह प्रयत्न बहुत सफल नहीं हुआ। जहाँसे होकर मुसलमान विजेता भारतमें बड़ी संख्या में घुसे और जिसने उनकी पहली अनीको झेला उस पंजाबने सिख धर्मके संस्थापक गुरु नानकको जन्म दिया। उन्होंने अपने धर्मके सिद्धान्त कबीरसे लिए और उनमें लड़ाकू हिन्दु-तत्त्वको मिलाया। उन्होंने मुस्लिम भावनाओंका आदर करते हुए समझौते के लिए हाथ बढ़ाया किन्तु यदि वह स्वीकार नहीं किया गया तो वे हिन्दू धर्मकी इस्लामके आक्रमणसे रक्षा करनेके लिए भी उतने ही तैयार थे। और इस तरह सिख धर्म इस्लामका सीधा परिणाम था। यह सर्वविदित है कि सिख कैसा बहादुर होता है और उसने ब्रिटिश सत्ताको क्या सेवा की है। हिन्दू धर्मपर इस्लामका यह प्रभाव हुआ कि उसने सिख धर्मको जन्म दिया और धर्मके एक प्रधान गुण अर्थात् सहि-