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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ष्णुताको उसके सच्चे और पूर्ण रूपमें व्यक्त किया। जिन दिनों कोई राजनीतिक प्रभाव काम नहीं करते होते थे तब बिना कठिनाईके हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरेकी भावनाका आदर करते हुए और बिना किसी विघ्न-बाधाके अपना-अपना धर्म पालते हुए पूर्ण शान्ति और सद्-भावनाके साथ-साथ रहते थे। हिन्दू धर्मने ही इस्लामको अकबर दिया जिसने अचूक अन्तर्दृष्टिसे सहिष्णुता की भावनाको पहचाना और भारतपर शासन करनेमें उसे स्वयं अपनाया। इसके सिवाय हिन्दू धर्मने अपना लचीलापन इस तरह भी जाहिर किया कि भयानक संघर्षके बाद भी विशिष्ट वर्गों और साधारण जनताका बहुत बड़ा भाग एकदम अप्रभावित रह गया और हिन्दू धर्म संघर्षमें से ऐसा तरोताजा होकर निकला जैसे हम शीतल जलमें से स्नान करने के बाद तेजस्वी होकर निकलते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि पहला धक्का जोरका लगा था; किन्तु जल्दी ही हिन्दू धर्मने दृढ़तासे अपनेको फिर स्थापित कर लिया। वक्ताने फकीरों और योगियोंका भी उल्लेख किया और कहा कि यद्यपि फकीर इस्लामको और योगी हिन्दू धर्मको मानते थे, तथापि उनकी जीवन-पद्धति लगभग एक-सी होती थी।

भाषणके अन्त में अनेक दिलचस्प सवाल पूछे गये और सदाकी तरह सभा सधन्यवाद समाप्त हुई। भाषण-मालाका तीसरा व्याख्यान[१] अगले शनिवारको ८ बजे मेसॉनिक टेम्पलमें होगा। व्याख्यान में निम्नलिखित विषयोंपर प्रकाश डाला जायेगा: भारतमें ईसाई मतका उदय; हिन्दुओंपर प्रभावकी दृष्टिसे इस्लाम और ईसाई मतकी तुलना; हिन्दू धर्मपर ईसाई मतका असर; ईसाई मत और आधुनिक अथवा पाश्चात्य सभ्यताका मिश्रण; भारतमें ईसाई मतकी प्रत्यक्ष असफलता और अप्रत्यक्ष सफलता; राममोहनराय, केशवचन्द्र सेन, दयानन्द, थियॉसफी, ब्रह्मसमाज और आर्यसमाज, हिन्दू धर्मकी वर्तमान स्थिति, उसकी दीर्घायु और जबर्दस्त जीवन-शक्तिका रहस्य।

[ अंग्रेजीसे ]
स्टार,१८-३-१९०५
  1. स्टार में तीसरे और चौथे भाषणका विवरण प्रकाशित भी हुआ हो तो उपलब्ध नहीं है। किन्तु इन भाषणोंका सारांश बादमें इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित हुआ था। देखिये,धर्मपर व्याख्यान", १५-४-१९०५।