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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४५

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११. श्री बालफ़रका मन्त्रिमण्डल

पाँसा फेंक दिया गया है और श्री सेंट जॉन ब्रॉड्रिक भारतके सिरपर मढ़ दिये गये हैं। श्री ब्रॉड्रिककी योग्यताके बारेमें सर्वत्र यही राय है कि युद्ध-कार्यालयका संचालन पूर्णतः बिगाड़ने में वे सफल रहे हैं, और मन्त्रीका स्थान सँभालने में अपने आपको उन्होंने अयोग्य साबित कर दिया है। परन्तु श्री बालफ़रने देखा कि वे श्री ब्रॉड्रिकको धता तो नहीं बता सकते, इसलिए उनको ऐसे पदपर बैठा दिया, जिसके खिलाफ कोई जोरदार आवाज नहीं उठ सकती। भारत-कार्यालयमें श्री ब्रॉड्रिकके बैठानेसे श्री बालफ़रको अपना एक भी वोट खोनेका डर नहीं है। इस नियुक्तिका भारत भले ही सर्वानुमतिसे विरोध करता रहे, परन्तु लोकसभाके सदस्योंके चुनावमें तो भारतका मत नहीं लिया जाता; वहाँ उसकी कुछ नहीं चलती। इसीलिए श्री ब्रॉड्रिक अपने आपको बचानेके लिए यह बेहूदा प्रस्ताव लानेकी हिम्मत कर सके कि दक्षिण आफ्रिकी फौजोंका पाँच लाख पौंडका पूरा वार्षिक खर्च भारत दे। इस योजनाका इतना विरोध हुआ कि अन्तमें उसे छोड़ ही देना पड़ा; परन्तु इसका भी उनपर कोई असर नहीं हुआ। इस नियुक्तिके अन्याय और हृदयहीनताको दक्षिण आफ्रिकाके लोगोंने भी महसूस किया है। ट्रान्सवाल लीडरके अग्रलेख लिखनेवालेने जितनी कड़ी भाषामें इस नियुक्तिको निन्दा की है उससे अधिक सख्त भाषाका प्रयोग हम नहीं कर सकते थे। इस नियुक्तिके बारेमें वह लिखता है:

श्री ब्रॉड्रिकने पालमालसे विदा ली, यह तो निश्चय ही एक बड़े लाभको बात हुई। परन्तु हमें शक है कि अपने काम-काजके शीर्षस्थानपर उनकी नियुक्तिसे भारतकी जनता खुश होगी। इस सर्वसम्मत निर्णयको मानना ही पड़ेगा कि वे पूर्णतः अयोग्य व्यक्ति हैं और ऐसी सूरतमें उन्हें चुपचाप गैर-सरकारी जिन्दगीमें उपेक्षापूर्वक डाल देना चाहिए। निश्चय ही मामलेकी सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध होना तो असम्भव ही है। परन्तु भारतमें वाइसराय लॉर्ड कर्जन है जो लॉर्ड डलहौजीके बाद सबसे अधिक योग्य और दृढ़ निश्चयी वाइसराय हैं। इसलिए श्री ब्रॉड्रिकको निश्चय ही ऐसे गुप्त आदेश दे दिये गये होंगे कि वे हर बातमें लॉर्ड कर्जनकी रायका आदर करें और नाममात्रको भारत-मन्त्री बने रहें। हम आशा करते हैं कि बात ऐसी ही होगी। क्योंकि, उन्होंने अबतक जो भी प्रयोग किये वे सब इतनी बुरी तरह असफल हुए हैं कि अब कोई पूर्वके नाजुक मामलोंमें उनका फूहड़पन पसन्द नहीं करेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९०३