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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दार भी हैं कि उनके प्राणों और उनकी सम्पत्तिकी रक्षा पूर्ण रूपसे की जायेगी। शायद सरकारको मालूम होगा कि पाँचेफस्ट्रम पहरेदार संघ तथा उपनिवेशकी इसी तरहकी अन्य संस्थाएँ, जैसा कि उन्होंने कहा है, सरकारके हाथ मजबूत करनेके उद्देश्यसे आन्दोलन चलाती हैं। उनका कथन है कि सरकार उनकी माँगें स्वीकार करनेके लिए तैयार है और उनकी रायमें वह इसी उद्देश्यको लेकर इंग्लैंड की सरकारसे, इस समय, बातचीत करनेमें संलग्न है।

मेरा संघ यह खयाल भी नहीं कर सकता कि सरकारका ऐसा कोई उद्देश्य हो सकता है। किन्तु संघ के नम्र विचारमें सरकारकी स्पष्ट विपरीत घोषणाके अभावका गलत अर्थ लगाया जा सकता है और उससे आन्दोलन में हिंसा तीव्र हो सकती है।

इसलिए मेरा संघ विश्वास करता है कि सरकार कृपा करके ऐसे उपाय करेगी जो पाँचेफस्ट्रूम तथा उपनिवेशके अन्य नगरोंके शान्तिप्रिय ब्रिटिश भारतीयोंके अधिकारोंकी रक्षाके लिए आवश्यक हों।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
प्रिटोरिया आर्काइव्ज़ : एल॰ जी॰ ९३, विविध फाइलें ९७/३, एशियाटिक्स १९०२/१९०७।

३१९. नेटाल नगर-निगम विधेयक

नेटाल सरकारका २१ फरवरी, १९०५ का गज़ट हमारे सामने है। इसमें "नगर-निगमोंसे सम्बन्धित कानूनको संशोधित और संघटित करनेके लिए एक विधेयक" है। हम एक अन्य स्तम्भमें उसकी वे धाराएँ उद्धृत कर रहे हैं, जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव ब्रिटिश भारतीयोंके प्रश्नपर पड़ता है। यह सरकारका इस विधेयकको पेश करने और कानूनके रूपमें पारित करनेका दूसरा प्रयत्न होगा। उसमें "रंगदार व्यक्ति" और "असभ्य प्रजातियों" की जो परिभाषाएँ दी गई हैं वे बहुत असन्तोषजनक हैं। उनसे "रंगदार व्यक्ति" की परिभाषासे पैदा हुई शरारत विधेयकमें दाखिल हो जायेगी। विधेयकके अनुसार, उक्त संज्ञामें, दूसरोंके साथ-साथ "प्रत्येक हाटेंटाट, कुली, बुशमैन या लशकर" सम्मिलित है। अब, स्वयं "कुली" और "लशकर " शब्दोंकी व्याख्या करनेकी जरूरत है। इनकी व्याख्या करनेका काम महान्यायवादीसे लेकर काफिर पुलिस-सिपाहीतक कानूनके सभी प्रशासकोंपर छोड़ देना बहुत खतरनाक है। उदाहरण के लिए काफिर पुलिस सिपाही कैसे जानेगा कि कौन "कुली" है और कौन "लशकर"? फिर, जब यह सभी जानते हैं कि "कुली" शब्द कितना घृणास्पद बन गया है, तब उसे विधेयकमें रखा ही क्यों जाये?

"असभ्य प्रजातियाँ" शब्दोंकी परिभाषा सम्बन्धित भारतीयोंके लिए अपमानजनक है और उनके वंशजोंके लिए तो और भी अपमानजनक है। सभ्यताकी एक अचूक कसौटी यह है कि जो आदमी सभ्य होनेका दावा करता है वह बुद्धिपूर्वक श्रम करनेवाला हो, और वह श्रमका गौरव समझे और उसका काम ऐसा हो कि उससे उसके समाजके हितोंकी वृद्धि हो। इस कसौटीपर तुच्छसे तुच्छ गिरमिटिया भारतीयको भी कसें तो वह खरा उतरेगा। फिर उसे असभ्य प्रजातिक