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३२०. केपका सामान्य विक्रेता-विधेयक

हमें यह देखकर प्रसन्नता है कि केप संसदके वर्त्तमान अधिवेशनमें जो विक्रेता-विधेयक पेश किया जानेवाला है उसके सम्बन्धमें, केपके ब्रिटिश भारतीय बराबर आन्दोलन करते रहे हैं। सर विलियम थॉर्न और माननीय एडमंड पॉवेलके नेतृत्वमें उनका एक शिष्टमण्डल माननीय महान्यायवादी (अटर्नी जनरल) से पहले ही मिल चुका है। तथापि हमें यह स्वीकार करना होगा कि श्री सँम्सनके लचर उत्तरसे हमें निराशा हुई है। उनके लिए यह कह देना बड़ा सरल है कि "किसी यूरोपीय भाषामें हिसाब रखनेके प्रश्नका खयाल करने के लिए कोई आवासी मजिस्ट्रेट बाध्य नहीं है। विधेयकमें विधान है कि वह चाहे तो उसका खयाल करे, चाहे न करे।" हम सब जानते हैं कि इन विवेकाधिकारोंका अर्थ क्या है। अतीतमें इनका दुरुपयोग किया गया है; और भविष्यमें नहीं किया जायेगा, ऐसा कोई निश्चय नहीं है। हम यह आश्वासन माननेके लिए बिलकुल तैयार हैं कि विधेयक "भारतीयोंपर प्रहार" नहीं है। परन्तु जहाँतक विवेकाधिकारका सम्बन्ध है, यदि उसका उपयोग इस प्रकार करनेकी गुंजाइश है तो विधेयकका अर्थ प्रहार करना ही होगा। हम साहसपूर्वक कहते हैं कि यह विधेयक निःसन्देह ऐसा है, जो भारी पैमानेपर उत्पीड़नका साधन बन जायेगा। फिर, महान्यायवादीने जब बहस करते हुए कहा कि प्रश्न किसी यूरोपीय भाषामें हिसाब-किताब रखनेका है तब उनका ध्यान मुख्य मुद्देपर बिलकुल नहीं गया। विधेयक तो इससे बहुत आगेतक जाता है और परवाना अधिकारीको अधिकार देता है कि अर्जदारको कोई यूरोपीय भाषा न जाननेकी बिनापर परवाना देने से इनकार कर दे। हमें अंग्रेजीमें हिसाब-किताब रखनेके बारेमें कोई आपत्ति न होती; यह योग्य मुनीमोंके द्वारा कराया जा सकता है। परन्तु अर्जदार कोई यूरोपीय भाषा जाने, यह आग्रह करना बिलकुल दूसरी ही बात है। अगर इस उपधाराका उद्देश्य धोखा-धड़ीको रोकना है तो हम नहीं समझ सकते कि हिसाब-किताब अंग्रेजीके अलावा किसी भी यूरोपीय भाषामें क्यों रखा जाये। यदि यह परिवर्तन सिर्फ हिसाब-किताबतक ही सीमित रखा जाये और परवाना प्राप्त लोगोंतक विस्तृत न किया जाये तो इस धारामें से भारतकी महान भाषाओंके प्रति अपमानका दोष निकल जायेगा। विद्वान महान्यायवादी आगे चलकर भारतीयोंको एक प्रवचन सुनाते हुए कहते हैं :

मैं ऐसी बातोंके बारेमें नहीं कह रहा हूँ जिन्हें मैं जानता नहीं। मैं न्यायप्रिय आदमी हूँ और स्थितिसे परिचित हूँ। उदाहरणके लिए, रविवारके दिन भारतीयोंके व्यापार करनेकी बात ही ले लीजिए। क्या आप मुझसे यह कहना चाहते हैं कि भारतीय व्यापारी रविवारको व्यापार नहीं करते?

हम बड़े आदरके साथ निवेदन करते हैं कि वे नहीं करते। और अगर जहाँ-तहाँ करते भी हैं, तो उनका मुहकमा क्या कर रहा है? क्या केपमें रविवासरीय व्यापार-कानून नहीं है? क्या गैरकानूनी रविवासरीय व्यापार कड़ाई करके बन्द नहीं किया जा सकता? और अगर हम इस दलीलको काममें ला सकें कि "आप भी तो करते हैं", तो क्या गैरकानूनी व्यापार भारतीयोंतक ही सीमित है? इसके अलावा, यह दुःख और आश्चर्यकी बात है कि केपके कानूनी पेशेवरोंके नेताने अपनी व्यवस्थाके समर्थनमें एक ऐसी दलील पेश करके, जिसका उस विषयपर