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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कोई असर नहीं पड़ता, कानूनकी परम्पराओंकी अवहेलना की है; क्योंकि रविवारको गैरकानूनी व्यापार करने और भारतीय व्यापारियोंको किसी एक यूरोपीय भाषाका ज्ञान रखने के बीच क्या सम्भव सम्बन्ध हो सकता है? परवानेके अर्जदारके लिए किसी यूरोपीय भाषाका ज्ञान आवश्यक करके वे रविवासरीय व्यापारको कैसे रोकेंगे? माननीय सज्जन आगे कहते हैं :

भारतीयोंके सम्बन्धमें एक कठिनाई और है। वे अक्सर अपने परिवारोंके साथ निकलते हैं और सारा परिवार व्यापार करता है। अगर व्यापारी थक जाता है तो उसकी पत्नी कुछ देर काम चलाती है; और जब वह थकती है तो बच्चे दूकान देखते हैं। उन्हें मालूम होगा कि यूरोपीय लोगोंको दूसरे ही ढंगसे रहना पड़ता है। उन्हें अपने बच्चोंको दिनके बहुत बड़े हिस्से के लिए स्कूलोंमें भेजना पड़ता है, इसलिए वे उन लोगोंके साथ ठीक तरहसे होड़ नहीं कर सकते जिनपर ये दायित्व नहीं हैं।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि वक्तव्य देते समय उक्त माननीय सज्जन भारतीयोंको छोड़कर और लोगोंकी बात सोच रहे थे; क्योंकि जब हम यह कहते हैं कि ऐसे भारतीय बहुत ही कम हैं, जिनकी पत्नियाँ बिक्रीके काममें उनकी मदद करती हैं तो हम जानकारीके साथ कहते हैं। हाँ, ज्यादा गरीब दुकानदारोंके बच्चे ऐसा भले ही करते हों; इससे इनकार करनेके लिए हम तैयार नहीं हैं। परन्तु भारतीय बच्चोंकी शिक्षाके प्रति ईर्ष्या-भाव ही इसका ज्यादातर कारण हो सकता है, और कुछ नहीं। भारतीयोंकी शिक्षाके मार्गमें हर तरहकी बाधा डालना और फिर यह कहना कि माता-पिता अपने बच्चोंको पढ़ाते नहीं, न्यायसंगत नहीं है। क्या यह असमानता—अगर वह यही हो तो—भारतीय दूकानदारसे यूरोपीय भाषा जाननेकी अपेक्षा करके दूर की जायेगी?

यह कहीं ज्यादा अच्छा और गौरवपूर्ण होता, अगर श्री सैम्सनने कोई समझौता कराया होता और भारतीयोंकी भावनाके प्रति कुछ खयाल दिखाया होता। विक्रेता-परवाना अधिनियमका सिद्धान्त ऐसा है, जिसे दक्षिण आफ्रिकाकी वर्त्तमान परिस्थितियों में सब सही विचार करनेवाले लोग मंजूर करेंगे। महान्यायवादीका सारा तर्क, जहाँतक वह संगत है, बताता है कि सब दूकानदारोंका हिसाब-किताब अंग्रेजीमें रखा जाना चाहिए। अगर यह बात है तो उपधारामें इसे उसी तरहसे कहना चाहिए। इससे सारी आलोचना व्यर्थ हो जायेगी; और विधेयकके उपबन्धोंपर अमल कराने में कानून-विभागको बहुत मदद मिलेगी, क्योंकि तब उन लोगों में से अधिकतर, जिनपर कि विधेयकका असर पड़ने की सम्भावना है, उन उपबन्धोंको स्वीकार कर लेंगे।

यहाँ सरसरी तौरपर हम अपने पाठकोंका ध्यान एक विचित्र प्रासंगिक जानकारीकी ओर भी खींचना चाहते हैं जो श्री सैम्सनने, शायद अनजाने, सरकारके रुखके सम्बन्ध में दे दी है। उन्होंने कहा :

हालाँकि यिडिश[१] भाषाको प्रवासियोंके निमित्त एक यूरोपीय भाषाके रूपमें स्वीकार किया गया है, वह उस रूपमें उस हिसाब-किताबपर लागू नहीं होती जो किसी यूरोपीय भाषामें रखा जाना है।
  1. यहूदियोंकी एक प्राचीन जर्मन बोली, जिसमें अनेक यूरोपीय भाषाओंके शब्द मिले हुए हैं।