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३२३. ऑरेंज रिवर कालोनी और एशियाई

हमने एकाधिक बार ऑरेंज रिवर कालोनीकी उग्र एशियाई-विरोधी नीतिकी ओर पाठकोंका ध्यान आकर्षित किया है। इस तरहकी नीतिमें भूतपूर्व बोअर सरकार वर्त्तमान सरकारके नजदीकतक नहीं पहुँची थी। वर्त्तमान सरकार प्रचलित रंगभेदपर सम्राट् के नामपर अपनी स्वीकृतिकी मुहर लगा रही है। श्री चेम्बरलेनके इस वादेकी पूर्ति की, कि ऑरेंज रिवर कालोनीके एशियाई-विरोधी कानूनोंको ब्रिटिश विचारोंके अनुरूप संशोधित कर दिया जायेगा, हमारी अबतककी प्रतीक्षा निष्फल हुई है। वे संशोधित तो जरूर किये जा रहे हैं, परन्तु अबतक हमें यह जानना बाकी है कि जिस तरीकेसे उनमें फेरफार किया जा रहा है वह उन परम्पराओंके अनुरूप है, जो सदा "ब्रिटिश" शब्द के साथ संलग्न रही हैं। सबसे ताजा उदाहरण इसी माहकी १० तारीखके ऑरेंज रिवर कालोनीके गवर्नमेंट गज़टमें उपलब्ध है। ओडेंडाल्सरस्ट नामक गाँवके लिए बने नियमोंमें, जिनपर परम श्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर और कार्य समितिकी मंजूरी मिल चुकी है, वतनी लोगोंके बारेमें कुछ उपधाराएँ हैं। उनका सम्बन्ध उनके बस्तियोंमें रहने, उनके काफिर-बियर बनाने और बेचने, बस्तियों में नाचके जलसे करने तथा उनमें मेहमानोंको रखने, कुत्ते पालने आदिसे है। अब, नियमोंमें जिस वतनी शब्दका प्रयोग किया गया है उसका अर्थ यह लगाया जायेगा कि उसमें दक्षिण आफ्रिकाकी किसी भी जन-जातिके सोलह वर्षकी प्रत्यक्ष अथवा अनुमानित आयुके स्त्री-पुरुष सम्मिलित हैं; और उसमें सब रंगदार लोग, और वे सब लोग भी जो कानून या प्रथाके अनुसार रंगदार कहे जाते हैं, या जिनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है—भले ही वे किसी भी प्रजाति या राष्ट्रके क्यों न हों—सम्मिलित हैं। वे नियम इन सबपर लागू माने जायेंगे। इसलिए बिलकुल साफ शब्दोंमें, उस गाँवकी "नगरपालिका" को "वतनी" शब्दमें ब्रिटिश भारतीयों और अन्य "रंगदार" लोगोंको शामिल करनेकी अनुमति दे दी गई है। यदि ऑरेंज रिवर कालोनीकी विधान परिषद में ऐसी व्याख्या और नियम स्वीकृत किये गये तो वे ब्रिटेन स्थित सरकारके निषेधाधिकारके विषय बन सकेंगे; परन्तु, क्योंकि उन्हें एक ग्राम-निकाय स्वीकार कर रहा है और वही "वतनी" शब्दकी नाजायज व्याख्या करना पसन्द करता है, इसलिए ब्रिटेन स्थित सरकारसे परामर्श किया ही नहीं जायेगा, और नरम तबीयतकी स्थानिक सरकारको तो उपर्युक्त तरीकेके व्यापक प्रतिबन्धोंका अनुमोदन करनेमें कोई पसोपेश है ही नहीं। साफ तो यह है कि उस सरकारका इस बातसे कोई वास्ता ही नहीं कि ऐसे नियम सम्राट्की भारतीय प्रजाकी भावनाओंको ठेस पहुँचाते हैं, या नहीं। इन नियमोंको हम विस्तार के साथ अन्यत्र प्रकाशित कर रहे हैं। इनसे जो कलंक व्यक्त होता है उसकी ओर हम इंग्लैंडके उन लोकसेवकोंका ध्यान आकर्षित करते हैं, जो न्याय और औचित्यकी लोकविश्रुत भावनाओंके धनी हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-३-१९०५