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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४४८

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३२४. नेटालकी भारतीय-विरोधी प्रवृत्ति

फरवरी २८के नेटाल गवर्नमेंट गज़टमें बन्दूकोंके उपयोगका नियमन करनेवाला एक विधेयक प्रकाशित हुआ है। उसका खण्ड ४ वतनियों और एशियाइयों द्वारा बन्दूकोंके उपयोगसे संबंध रखता है। अन्यत्र हम सब धाराएँ प्रकाशित कर रहे हैं। जाहिर है कि विधेयकके निर्माताओंने लगभग सहज वृत्तिसे एशियाइयोंको वतनियोंके साथ मिला दिया है और इस मनोवृत्तिका ही हमने सदा दृढ़ता और आदरके साथ विरोध किया है। एक वर्ग और दूसरे वर्ग के बीच भेद किया गया है, इसलिए एशियाइयोंको तबतक न्याय प्राप्त नहीं हो सकता, जबतक कि उन्हें वतनियोंसे अलग न माना जाये। वतनियोंका प्रश्न दक्षिण आफ्रिकाका बहुत बड़ा प्रश्न है। उनकी जनसंख्या बहुत बड़ी है। उनकी सभ्यता एशियाई या यूरोपीय सभ्यतासे बिलकुल भिन्न है। वे इस भूमिके ही अपत्य हैं, इसलिए उन्हें अच्छा व्यवहार पानेका अधिकार है। परन्तु वे जो कुछ भी हैं उसके ही कारण, कदाचित् प्रतिबन्धात्मक प्रकारके किसी कानूनकी जरूरत है। इसलिए, वह एशियाइयोंपर कभी लागू नहीं हो सकता। बन्दूकोंके इस मामलेमें एशियाइयोंको जो वतनी लोगोंके साथ जोड़ दिया गया है, वह बहुत ही अनुचित है। बन्दूकें रखने के सम्बन्धमें विधेयक द्वारा वतनी लोगोंपर जो प्रतिबन्ध लगाये गये हैं, वैसे कोई प्रतिबन्ध ब्रिटिश भारतीयोंपर लगाने की जरूरत नहीं है। प्रबल गोरे वतनी लोगोंको शस्त्र-सज्जित होनेसे रोक कर प्रबल बने रह सकते हैं। परन्तु क्या ब्रिटिश भारतीयोंको इस प्रकार रोकने में न्यायका जरा-सा भी अंश है? सभी जानते हैं कि जो ब्रिटिश भारतीय इस उपनिवेशमें बसे हैं वे लड़ाकू नहीं हैं। वे अत्यन्त सीधे-सादे हैं। फिर उन्हें वतनियोंके ही वर्गमें रखकर उनका अपमान क्यों किया जाये? क्या नेटालमें आनेवाला कोई अपरिचित व्यक्ति इस प्रकारके कानूनको देखकर यह निष्कर्ष नहीं निकालेगा कि ब्रिटिश भारतीयोंका समाज बहुत तकलीफदेह होगा? ऐसे प्रसंग आते हैं जब कि कोने-किनारे में रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंको बन्दूक या रिवॉल्वरकी जरूरत हो। अगर यह विधेयक कानूनमें परिणत हो गया तो उन्हें साधारण अधिकारियोंके पास नहीं, बल्कि वतनी मामलोंके सचिवके पास, जिसका ब्रिटिश भारतीयोंके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, रिवॉल्वर या बन्दूक रखनेकी इजाजतकी याचना करनेके लिए जाना होगा—मानो, भारतीयोंके बन्दूक रखनेके बारेमें मजिस्ट्रेट लोग अपने विवेकका उपयोग करनेके अयोग्य हों। हमें लगता है कि क्या इस दुराग्रही तरीकेसे भारतीय-विरोधी पूर्वग्रहोंका पोषण करके सरकार ब्रिटिश भारतीयोंको गैरजरूरी तौरपर संतप्त नहीं कर रही है? हमें आशा है कि जब विधेयक नेटालकी संसदके सामने आयेगा, उसमें संशोधन कर दिया जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-३-१९०५