सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३२५. फुटकर मिनिटोंका मूल्य

किसी कामको शुरू करनेसे पहले उसको करनेके सोच-विचारमें ही कितना समय बीत जाता है। इस प्रकारका समय फुटकर मिनिट समझा जाता है। हम समयके इन टुकड़ोंको कोई परवाह किये बिना छीज जाने देते हैं। नगण्य समझे जानेवाले इन छुट-पुट मिनिटोंका जोड़ लगानेपर वह जीवनका बड़ा भाग हो जाता है। और इनका सही उपयोग न करना आयुष्यको व्यर्थ खो देनेके बराबर है।

हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने शिक्षण, सुधार और प्रगतिके सम्बन्धमें कम या ज्यादा चर्चा करता रहता है। खाली समयका सबसे बढ़िया उपयोग क्या किया जाये, हम इसके लिए आयोजन करते हैं। परन्तु जब छुट-पुट समयमें अवकाशके थोड़े-बहुत मिनिट मिलते हैं तब स्त्रियाँ और पुरुष—उनमें भी विशेष रूपसे स्त्रियाँ—उनका खयाल मनसे उतार कर उन्हें खो देते हैं। जब समय मिल जायेगा तब हम क्या-क्या करेंगे, इसके हवाई किले हम बनाते रहते हैं। समय तो पाव घंटेका, आधे घंटेका अथवा थोड़े मिनटोंका ही मिलता है। उस समय हम कहेंगे कि कुछ नहीं, अभी काफी समय नहीं है। इस प्रकार सुवर्ण अवसर बीत जाता है। और हम स्वप्न ही देखते रहते हैं।

जिसे दस पौंडकी आवश्यकता है, ऐसा व्यक्ति रोज मिलनेवाले चन्द शिलिंगोंकी परवाह न करे तो उसे हम कैसा मूर्ख बतायेंगे; और फिर भी हम उसके समान ही आचरण करते हैं। समय नहीं मिलता, इसके लिए मनमें दुःखित होते हैं और उन छुट-पुट शिलिंगों के समान, जिनका जोड़ एकाध बैंक नोटके बराबर हो सकता है, हम छुट-पुट मिनटोंको, जिनको जोड़नेसे दिन बन सकते हैं, आलसी बनकर खोते रहते हैं।

एक गौरांग नवयुवती महिला ऐसे मिनटोंका नित्य प्रति नियमपूर्वक उपयोग करनेसे इटालियन भाषा सीखने में कामयाब हो गई थी। एवं एक अन्य महिला इस प्रकारके फुरसतके समयमें दान-धर्मके लिए कढ़ाईका काम करके वर्ष भरमें आश्चर्यजनक बड़ी रकम पैदा कर सकी थी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-३-१९०५