सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३३२. केपके भारतीय भाइयोंका स्तुत्य कार्य
नये विधेयकके सम्बन्धमें सभा और शिष्टमण्डल

हम अपने केप-वासी भारतीय भाइयोंको मुबारकबादी देते हैं कि वे नये बननेवाले कानूनके बारेमें ठीक समयपर सतर्क हो गये और अपने कर्त्तव्यका पालन करनेमें लग गये। केपके गवर्नमेंट गज़टमें व्यापारियोंके परवाना अधिनियमका मसविदा प्रकाशित होते ही हमारे नेता उसका मतलब समझ गये, और उन्होंने केप टाउनमें एक विराट सभा[] करके उसमें उसके सम्बन्धमें अपनी भावना प्रकट की एवं प्रस्ताव पास किये। (इसका विवरण[] हमने छापा है)। वे इस मामलेकी गम्भीरतासे वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने इतना करके ही सन्तोष नहीं माना। उन्होंने एक शिष्टमण्डल बनाकर केप कालोनीके माननीय महान्यायवादीसे मुलाकात भी की। और उस अवसरपर वे प्रस्ताव उनके सामने पेश किये जो सभामें स्वीकार किये गये थे तथा उनपर उनसे चर्चा की।

उन्होंने शिष्टमंडल बनाने में भी चतुराईसे काम लिया, अर्थात् उसमें दो स्थानीय सुप्रतिष्ठित संसद-सदस्य[] सम्मिलत किये और उनको नेतृत्व सौंपा। महान्यायवादी श्री सेम्सनने कई बातोंका स्पष्टीकरण किया जिनमें से कुछ स्पष्टीकरण उचित थे। अन्य उत्तर कुल मिलाकर सन्तोषप्रद थे, ऐसा नहीं कहा जा सकता, और उनपर विचार करनेसे स्पष्ट पता चलता है कि जब यह कानून संसदमें पेश किया जाये तब भारतीय नेताओंको सजग रहनेकी पूरी आवश्यकता है। मुख्यतः विचार भाषाके सम्बन्धमें हुआ। कानूनमें एक धारा ऐसी है कि व्यापारिक परवानेका आवेदन देनेवाले व्यक्तिको किसी भी एक यूरोपीय भाषाका जानकार होना चाहिए। इस सम्बन्धमें श्री सेम्सनने साफ-साफ बातें कहीं, और कुछ बातोंपर ऐसे उत्तर दिये मानो वे चतुराईसे टाल देनेकी कोशिश कर रहे हों। उन्होंने एक सन्तोषप्रद बात यह कही कि वे भाषा-सम्बन्धी धारामें स्पष्ट कर देंगे कि केवल बहीखाता किसी यूरोपीय भाषामें रखा जाये। आवेदकको वह भाषा आती है या नहीं, इस बातपर ध्यान देनेकी जरूरत नहीं है। बहीखाता यूरोपीय भाषामें रखनेकी बात भारतीयोंको मंजूर है, फिर भी महान्यायवादीने इस सम्बन्ध में बहुत टीका की। यद्यपि टीका तर्कपुष्ट नहीं थी फिर भी उसपर से हमारे भारतीय भाइयोंको बहुत सावधान हो जाना चाहिए। मजिस्ट्रेटकी मर्जी के सम्बन्ध में जो टीका की गई उसपरसे चौकन्ने रहने की आवश्यकता है। आजकल यदि कोई बात मजिस्ट्रेटकी मर्जीपर छोड़ दी जाये तो समझना चाहिए कि वह गड़बड़में पड़ गई। सारे दक्षिण आफ्रिकामें हम देख रहे हैं कि ऐसी मर्जीका परिणाम एक ही होता है और वह सदैव भारतीयोंके विरुद्ध। श्री सेम्सनने यह बताना चाहा कि भारतीयोंको अधिक डरनेका कारण नहीं है, परन्तु ऐसा करनेमें वह मर्यादासे बाहर निकल गये, इसलिए अन्तिम उत्तर देते समय श्री पॉवेलने पोल खोल दी कि वे लोगोंको खुश करने के लिए ही ऐसी गोल-मोल बातें कह रहे हैं। उनका उत्तर एक मजाक-सा लगता है।

  1. ब्रिटिश भारतीय सभाके तत्त्वावधानमें केप टाउनके प्रमुख भारतीय निवासियोंकी एक सभा मेसॉनिक हॉल, केप टाउनमें हुई थी।
  2. देखिए, इंडियन ओपिनियन, १८-३-१९०५ और २५-३-१९०५।
  3. सर विलियन थॉर्न, एम॰ एल॰ ए॰ और माननीय एडमंड पॉवेल, एम॰ एल॰ सी॰।