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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

"मजिस्ट्रेटकी अर्जी भी अंग्रेजीमें देनेकी जरूरत नहीं है; यद्यपि वह उसकी समझमें आ सके, ऐसी होनी चाहिए।" इसका क्या मतलब है?

कानून बनाने के प्रयोजनके सम्बन्ध में बोलते हुए श्री सेम्सनने कई तरहकी बातें कहीं। इससे प्रतीत होता है कि खुद इन साहबके मनमें भी वहम है और वे भारतीयोंके प्रति अच्छी भावना नहीं रखते। ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने गम्भीरतासे बात की हो; और जो उदाहरण उन्होंने बताये वे हमारे मतसे तो असंगत थे। एक बार उन्होंने कहा कि यह कानून विशेष रूपसे भारतीयोंके लिए नहीं बनाया गया है; और दूसरी बार कहा कि व्यापार-संघ (चेम्बर ऑफ कॉमर्स) आदि व्यापारी-मण्डल शिकायत किया करते हैं और दबाव डालते हैं कि भारतीयोंके बही-खाते बहुत बेढंगे होते हैं, इसलिए ऐसा कानून बनाने की जरूरत पड़ रही है। भारतीयोंके बही-खातों से अदालत में आवश्यक जानकारी प्राप्त करनेमें बड़ी असुविधा होती है, ऐसा उनका अपना अनुभव है, इत्यादि। इस प्रकार यूरोपीय व्यापारियोंका रक्षण करनेके लिए यह कानून बन रहा है। स्पष्ट ही ये स्पष्टीकरण पूरा विचार किये बिना ही दिये गये प्रतीत होते हैं। फिर वे स्वयं अपनी न्यायप्रियता बताने लगे। और भारतीयोंके बारेमें अपनी निजी जानकारी दिखाने लगे। इसी सिलसिले में उन्होंने रविवारको व्यापार होनेका उल्लेख किया; और पूछा कि क्या भारतीयोंका पूराका पूरा परिवार रविवारको व्यापार करता हो, ऐसा उदाहरण देखने में नहीं आता? श्री सेम्सनने बताया कि उनके पास एक पत्र आया है कि एक पूरा भारतीय कुटुम्ब, अर्थात् औरत और बच्चों सहित, रविवारको गैरकानूनी व्यापार करता है। इन लोगोंके साथ गोरोंकी स्पर्धा नहीं हो सकती। भारतीय और यूनानी इस बातमें बुरे हैं और कुछ लोगोंके कारण सबको दंड भुगतना पड़ता है, इत्यादि, इत्यादि। श्री गुलने[१] तुरन्त उनकी बात काटी और कहा कि चिट्ठी लिखनेवाला ईर्ष्यालु होगा और यह विवरण गलत है। फिर भी अगर कोई कसूर करता है तो कायदेके अनुसार उसे सजा क्यों नहीं देते?

सार रूपमें उपर्युक्त बातें हुईं। अब हमारे मनमें यह प्रश्न पैदा होता है कि क्या अंग्रेजी या यूरोपीय भाषा जान लेनेसे यह भ्रष्टता खत्म हो जायेगी? महान्यायवादी एक होशियार वकील हैं। फिर भी ऐसी दलीलबाजी करनेमें वे झिझके नहीं, इसलिए हमें आश्चर्य और खेद होता है। मनुष्यकी भाषाका उसके चालचलनसे क्या सम्बन्ध है? भारतीय व्यापारी उक्त भाषामें बहीखाते लिखवा लें क्या तब शिकायत मिट जायेगी?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-४-१९०५
 
  1. श्री जी॰ एम॰ एच॰ गुल, केप टाऊनके एक प्रमुख भारतीय व्यापारी और शिष्टमण्डलके एक सदस्य।