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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


धारा (क्लॉज) २२ की उपधारा (ग) के अन्तर्गत उन लोगोंको नागरिकताका अधिकार प्राप्त करनेके अयोग्य ठहराया गया है जिन्हें कि १८९६ के अधिनियम ८ के अनुसार संसदीय मताधिकार उपलब्ध नहीं है। १८९६ का अधिनियम ८ उन लोगोंको मताधिकारसे वंचित करता है जो कि ऐसे देशोंके निवासी हैं, जिनमें अबतक संसदीय मताधिकारपर आधारित प्रातिनिधिक संस्थाएँ नहीं हैं।

आपके प्रार्थी निवेदन करते हैं कि संसदीय मताधिकार तथा नगरपालिका मताधिकार में कोई सम्बन्ध नहीं है, और यदि तर्कके लिए यह सच मान भी लिया जाये कि भारतमें भारतीयोंको संसदीय मताधिकार उपलब्ध नहीं है, तो भी यह निश्चयपूर्वक सिद्ध किया जा सकता है कि उन्हें काफी हदतक नगरपालिकाके मताधिकार उपलब्ध हैं। आपके प्राथियोंमें से कुछ लोग भारतमें स्वयं नगरपालिकाओं या परिषदोंके सदस्य रह चुके हैं। उपनिवेश में बसे ब्रिटिश भारतीयों का भूतकालीन इतिहास भी उपर्युक्त प्रकारकी निर्योग्यताको उचित नहीं ठहराता। इसलिए आपके प्रार्थी नम्र निवेदन करते हैं कि यदि प्रस्तुत धाराको आपका अनुमोदन मिल गया तो यह ब्रिटिश भारतीयोंका अनावश्यक अपमान होगा।

उपनिवेशकी नगर-परिषदोंको "रंगदार व्यक्तियों" द्वारा पैदल पटरियों तथा रिक्शोंके उपयोगके सम्बन्धमें उपनियम बनानेका जो अधिकार दिया गया है उसमें—जहाँतक ये शब्द भारतीयों को शामिल करते हैं—आपके प्रार्थियोंको कोई औचित्य नजर नहीं आया है। इस प्रकार इस सम्बन्धमें "रंगदार व्यक्ति" की परिभाषा अपना प्रभाव डालती है और खयाल किया जाता है कि इससे बहुत-सी शरारतें पैदा होंगी।

आपके प्रार्थी उक्त विधेयककी धारा २०० का भी नम्रतापूर्वक विरोध करते हैं। उसमें परिषद्को वतनियों या "असभ्य प्रजातियों" के लोगोंके पंजीकरणकी एक प्रणाली स्थापित करने के लिए उपनियम बनानेका अधिकार दिया गया है। आपके प्रार्थियोंके विचारमें उन भारतीयोंका, जो "असभ्य प्रजाति" शब्दों में शामिल किये गये हैं, पंजीकरण करना सर्वथा अनुचित है, क्योंकि भारतीयोंको मेहनतसे मुँह मोड़ते हुए कभी नहीं पाया गया है। प्रस्तुत धारासे आगे यह भी मालूम पड़ता है कि सुसंस्कृत भारतीयोंके भी पंजीकरणकी आवश्यकता होगी।

दूसरे विधेयक सम्बन्ध में आपके प्रार्थी निवेदन करते हैं कि इससे उपनिवेशवासी ब्रिटिश भारतीयोंको, बड़ा दुःख हुआ है। सं॰ ४४ से ४७ तकके खण्ड वर्तानियों तथा एशियाइयों द्वारा बारूदी हथियारोंके उपयोगसे सम्बद्ध हैं। आपके प्रार्थियोंके विचारसे भारतीयोंका वर्तानियोंके साथ मिला दिया जाना उचित नहीं है। भारतीय अत्यन्त सीधे-सादे उपनिवेशी हैं और उन्होंने कभी भी किसीको कष्ट नहीं दिया। इसलिए आपके प्रार्थी सादर निवेदन करते हैं कि भारतीयों और वर्तनियोंको साथ मिलाना तथा भारतीयोंको इस बातके लिए मजबूर करना, कि वे बारूदी हथियारोंके लिए, जिनकी कि आत्मरक्षा के लिए आवश्यकता पड़ सकती है, अनुमतिपत्र प्राप्त करनेसे पहले वतनी विभागसे पूछताछ करें, नितान्त अपमानजनक होगा।

अन्तमें आपके प्रार्थियोंकी प्रार्थना है कि उपर्युक्त विधेयकोंको इस प्रकार संशोधित कर दिया जाये कि उनसे शिकायतकी सभी बातें दूर हो जायें।

[अंग्रेजीसे]
इंडिया, १४-९-१९०६