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३३७. दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके बारेमें लॉर्ड कर्ज़नका भाषण

रायटरके तारसे मालूम होता है कि भारतकी विधानसभा में लॉर्ड कर्ज़नने हमारे पक्षमें जोरदार भाषण किया है। इस भाषणमें उन्होंने कहा है कि जबतक भारतीयोंके स्वत्वोंकी सम्पूर्ण रक्षा करनेका सबूत दक्षिण आफ्रिकाके राज्य नहीं देते तबतक उनको भारतकी ओरसे सहायता नहीं मिलेगी। भारतीयोंका रक्षण करनेका काम भारत सरकारका है और उस कामको वह अंजाम देती रहेगी।

ये वचन हमें आनन्द देनेवाले हैं। इनका प्रभाव अच्छा ही पड़ेगा। यह भाषण बताता है कि यहाँपर जो परिश्रम हम कर रहे हैं वह व्यर्थ नहीं जा रहा है। हमारे लिए मुनासिब है कि हम और भी अधिक परिश्रम करते रहें और जब-जब प्रसंग आये, ढाये जानेवाले कष्टोंके बारेमें शिकायत करें। हमें यकीन है कि ऐक्यसे और मिलकर मेहनत करनेसे हम जीतेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-४-१९०५

३३८. पत्र : दादाभाई नौरोजीको[१]
ब्रिटिश भारतीय संघ

२५ व २६ कोर्ट चेम्बर्स
रिसिक स्टीट
जोहानिसबर्ग
१० अप्रैल, १९०५

माननीय श्री दादाभाई नौरोजी
२२, केनिंगटन रोड
लंदन

प्रियवर,

कहते हैं, श्री लिटिलटनने यह कहा है कि ट्रान्सवालके परीक्षात्मक मुकदमेके निर्णयके बाद ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति युद्धके पहलेकी स्थितिसे अच्छी हो गई है। इंडियन ओपिनियनके ८ अप्रैलके अंकके पहले सम्पादकीय लेखमें इस वक्तव्यका उत्तर दिया गया है। साधारणतः स्थिति तबसे अच्छी नहीं, खराब हुई है। परीक्षात्मक मुकदमेसे जो सुविधा भारतीयोंको मिली है, यह है कि वे युद्धके पहलेके दिनोंकी हालत में पहुँच गये हैं। मगर इसका श्रेय भी सरकारको शायद ही मिल सकता है, क्योंकि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालयके सामने भारतीयोंके मतका बड़े जोरसे विरोध किया था।

  1. इस पत्रको दादाभाईने नीचेका अंश जोड़कर भारत-मन्त्री और उपनिवेश मन्त्रीके पास भेज दिया था
    "मुझे पूरी आशा है कि आप विरोध करेंगे और सम्राट्की ब्रिटिश भारतीय प्रजाके प्रति, जो आपसे राहत की उम्मीद करती है, न्याय करेंगे।"