यह भी देखनेकी बात है कि श्री बार्नेट ने अपना आक्रमण एक ऐसी श्रोता-मण्डलीके सामने किया था, जिसमें नेटालके भूतपूर्व प्रधानमन्त्री सर अल्बर्ट हाइम और उपनिवेशके अन्य अनेक प्रमुख व्यक्ति शामिल थे। वक्ताके व्याख्यान दे चुकनेपर सर अल्बर्ट हाइमने एक लम्बी मीमांसा की थी और उसमें हमें श्री बार्नेटके गम्भीर आरोपका खण्डन कहीं भी दिखलाई नहीं पड़ता। क्या उपनिवेश मन्त्रीको इसमें विचारकी सामग्री प्राप्त नहीं होती?
- [अंग्रेजीसे]
- इंडियन ओपिनियन, १५-४-१९०५
३४१. धर्मपर व्याख्यान
जोहानिसबर्ग के समाचारपत्रोंसे पता चलता है कि वहाँकी थियोसॉफिकल सोसाइटीने श्री गांधीको हिन्दू धर्मपर भाषण देनेके लिए आमन्त्रित किया और उसपर उन्होंने मेसॉनिक टेम्पलमें चार भाषण दिये। हर बार भवन भर जाता था। अन्तिम भाषण मार्च महीनेकी २५ वीं तारीखको दिया। इनमें से दो भाषणोंका विवरण स्टार[१] अखबार में आ गया है। अपने अनेक पाठकोंकी माँगपर हम गांधीजीसे प्राप्त चारों भाषणोंका संक्षिप्त सार लेकर नीचे दे रहे हैं।
दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंका अपमान
थियोसॉफिकल सोसाइटीने मुझे भाषण करनेके लिए बुलाया तब मैंने दो बातें सोचकर वह् आमन्त्रण स्वीकार किया। मुझे दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए बारह बरस होने आते हैं। यहाँ मेरे देशवासियोंपर जो तकलीफें आती हैं, उनकी खबर सबको है। लोग उनके रंगको तिरस्कारकी दृष्टिसे देखते हैं। मैं ऐसा मानता हूँ कि यह सब गलतफहमीसे होता है और यह गलतफहमी दूर करनेमें मुझसे जितनी बने, उतनी मदद करनेके हेतुसे मैं दक्षिण आफ्रिका में पड़ा हूँ। इसलिए मुझे लगा कि यदि मैं सोसाइटीका आमन्त्रण स्वीकार करूँ तो जो मेरा कर्त्तव्य है उसमें एक हदतक मदद मिलेगी, और यदि मैं आपको इन भाषणोंसे भारतीयोंके प्रति थोड़ा भी अच्छा खयाल करा सका तो अपना भाग्य धन्य समझँगा। मुझे आपको बताना तो [हिन्दुओं][२] ही के विषयमें है; किन्तु हिन्दू और अन्य जो भारतीय हैं उनकी बहुत-सी रीति एक ही है। सारे भारतीयोंके गुण-दोष समान हैं और सारे एक ही शाखासे उतरे हैं। फिर दूसरा कारण यह था कि थियोसॉफिकल सोसाइटीके उद्देश्योंमें से एक उद्देश्य विभिन्न धर्मोंका मिलान करके उनका तत्त्व खोजकर लोगोंको यह बताना है कि वास्तवमें देखा जाये तो सारे धर्म ईश्वरको पहचाननेके अलग-अलग मार्ग हैं और कोई धर्म खराब है, ऐसा कहते हुए हिचक होनी चाहिए। मैंने सोचा कि यदि मैं हिन्दू धर्मके बारेमें दो बातें कहूँगा तो थोड़ा-बहुत यह हेतु भी सिद्ध होगा।
हिन्दू
हिन्दू वास्तव में हिन्दुस्तानके रहनेवाले नहीं माने जाते। पश्चिमके विद्वान कहते हैं कि हिन्दू और यूरोपके अधिकांश लोग एक समय मध्य एशिया में निवास करते थे। वहाँसे अलग होकर कुछ लोग यूरोप गये, कुछ ईरान गये और कुछ हिन्दुस्तानमें पंजाबके रास्तेसे पहुँचे और वहाँ