१३. देर आयद दुरस्त आयद
ट्रान्सवालके गवर्नमेंट गज़टके एक ताजा अंकमें हमने पढ़ा कि जर्मिस्टनका एशियाई दफ्तर उठा दिया गया। दिन चढ़े सही, लेकिन इस जागनेपर सरकार भारतीय समाजकी तरफसे बधाईकी पात्र है। जबसे यह दफ्तर खुला था तभीसे ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय बराबर कहते आये है कि यह शुद्ध अपव्यय है। सरकारने अपने इस कदम द्वारा सिद्ध कर दिया कि उनकी बात सही थी। हम आशा करते है कि सरकार एक कदम और आगे बढ़कर मुहकमेको ही पूरी तरहसे उठा देगी। उसमें भला किसीका नहीं है। उलटे, वह ब्रिटिश भारतीयोंको काफी असुविधा और उनकी भावनाओंको चोट पहुंचाता है। अनुमतिपत्रोंका सारा काम उसके पाससे कम हो जानेके बाद, सवाल यह है कि उसके पास अब क्या काम रह जाता है? आर्थिक नियन्त्रण उसके हाथोंमें नहीं है। और परवाने जारी करनेके लिए परवाना-अधिकारी हैं। एशियाइयोंके नाम दर्ज करनेके लिए मुख्य अनुमतिपत्र सचिव हैं। इस तरह कल्पना नहीं की, जा सकती कि इस मुहकमेकी उपयोगिता आखिर है किस बातमें?
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९०३
१४. पत्र:लेफ्टिनेंट गवर्नरके सचिवको
ब्रिटिश भारतीय संघ
२५ व २६ रिसिक स्ट्रीट
जोहानिसबर्ग
अक्टूबर १९, १९०३
निजी सचिव
परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर
महोदय,
आपके १ तारीखके पत्रके सन्दर्भ में मैं आपको विनम्रतापूर्वक याद दिलाता हूँ और संघकी ओरसे प्रार्थना करता हूँ कि परमश्रेष्ठसे ब्रिटिश भारतीय शिष्टमण्डल[१] की भेंटके लिए कोई तिथि निश्चित कर दें।
आपका आज्ञाकारी सेवक,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ
प्रिटोरिया आर्काइब्ज़: एल० जी० २१३२, एशियाटिक्स १९०२-१९०६।
४–२
- ↑ सबसे पहले २५ सितम्बरको यह प्रार्थना की गई थी कि परवानोंके सम्बन्धम स्थिति पर विचारके लिए एक शिष्टमण्डलको मिलनेकी अनुमति दी जाये।