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१५. ट्रान्सवालके अनुमतिपत्र

मुख्य सचिवने पिछले महीनोंमें जारी हुए अनुमतिपत्रोंके अंक प्रकाशित किये हैं, जो जोहानिसबर्गके अखबारोंमें छपे हैं। ब्रिटिश भारतीयोंके लिए यह प्रालेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प है। इस अवधिमें जारी किये गये अनुमतिपत्रोंकी कुल संख्या ३२,३५१ है। इसमें से पुराने निवासियोंको दिये गये अनुमतिपत्र केवल ७,८२७ हैं और शेष २४,५२४ नये आगन्तुकोंको दिये गये हैं। यह संख्या केवल ट्रान्सवालकी है। जनवरी और मार्चके बीच ११,८६५, अप्रैल और जूनके बीच ११,८४४ और जुलाई तथा सितम्बरके बीच ८,६४२ अनुमतिपत्र जारी हुए। इन आँकड़ोंमें उन भूतपूर्व निवासियोंको शामिल नहीं किया गया है जिन्होंने लड़ाईके दिनोंमें अपने अनुमतिपत्र लौटा दिये थे या जिन्हें वापस लौटनेकी इजाजत दे दी गई थी। इसलिए इस संख्या में केवल वही यूरोपीय शामिल है, जो बोअर क्योंकि याद रखनेकी बात है कि एशियाइयोंके अनुमतिपत्र इनमें शुमार नहीं किये गये हैं। अकसर ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंको न आने देनेका कारण यह बताया जाता है कि अगर उनके प्रवेशपर कोई रोक नहीं लगाई गई तो उपनिवेशमें वे–ही–वे हो जायेंगे। ये अंक आरोपका माकूल जवाब हैं। सरकारी कागज बताते हैं कि इस समय ट्रान्सवालके उपनिवेशमें शायद पूरे १०,००० भारतीय भी नहीं होंगे, जब कि जोहानिसबर्गके एक पत्रके अनुसार ट्रान्सवालमें नागरिकों सहित ५,००,००० यूरोपीय हैं। इसलिए अभी कोई ऐसा आसन्न भय तो नहीं नजर आता कि ब्रिटिश भारतीय ट्रान्सवालको पदाक्रान्त कर देंगे। परन्तु ये अंक एक दूसरी दुःखदायी कहानी भी सुना रहे है कि, जहाँ यूरोपीय शरणार्थियोंसे तीन गुने नये यूरोपीयोंको ट्रान्सवाल प्रवेशके अनुमतिपत्र दिये गये हैं वहाँ गैर-शरणार्थी ब्रिटिश भारतीयोंको अनुमतिपत्र अगर दिये भी गये हों तो बहुत कम, भले ही विशेष रूपसे उनका खयाल किये जाने के कितने ही प्रबल कारण रहे हों। हमें ऐसे बीसियों लोगोंका पता है, जिनको ट्रान्सवालमें काम दिया जानेका आश्वासन दिया गया। परन्तु चूँकि वे शरणार्थी नहीं थे, इसलिए उन्हें अनुमतिपत्र नहीं मिले और इस कारण वे इन आश्वासनोंका लाभ नहीं उठा सके। हर हफ्ते केवल सत्तर अनुमतिपत्र एशियाइयोंको मिलते हैं। हमारा खयाल है, इनमें चीनी भी शामिल हैं। और जिन गैर-शरणार्थी भारतीयोंने अर्जियाँ दी हैं, उनको यह जवाब मिला है कि जबतक शरणार्थी भारतीयोंकी सारी अर्जियाँ खत्म नहीं हो जाती, उनकी अर्जियोंपर विचार नहीं हो सकेगा। अब अनुमतिपत्रोंका सारा मुहकमा अनुमतिपत्रोंके मुख्य सचिवके मातहत हो गया है। क्या हम आशा करें कि स्पष्ट रूपसे यूरोपीयोंकी—चाहे वे ब्रिटिश प्रजाजन हों या नहीं—अर्जियोंके प्रति जो उदारता वे प्रकट कर रहे हैं, वही भारतीयोंकी अर्जियोंके प्रति भी करेंगे? हम एक क्षणके लिए भी यह नहीं सुझाना चाहते कि वे हजारों गैर-शरणार्थी ब्रिटिश भारतीयोंको ट्रान्सवालमें प्रवेश दे दें। पहले तो ट्रान्सवालमें आनेके इच्छुक लोग हजारोंकी संख्यामें हैं भी नहीं, और मान लीजिए कि हजारों भारतीय ट्रान्सवालमें आना चाहते हैं, तो हम खुद जानते हैं कि उनकी अर्जियोंपर विचार नहीं हो सकता। परन्तु जो लोग ट्रान्सवालमें पहलेसे ही बस गये हैं उनकी मददके लिए अगर नये आदमियोंकी जरूरत है, अथवा जो लोग काफी पढ़े-लिखे हैं और जिनकी आजीविकाके स्वतन्त्र साधन है और संभवतः जिनके अच्छे ताल्लुकात है, उनकी अर्जियोंपर तो अवश्य उदारतापूर्वक