सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३७
धर्मपर व्याख्यान


बनारस में कबीर पैदा हुए। उन्होंने सोचा कि हिन्दू विचारके अनुसार हिन्दू-मुसलमानमें भेद नहीं है। अगर दोनों अच्छा काम करें तो स्वर्ग प्राप्त कर सकते हैं। मूर्तिपूजा हिन्दू धर्मका आवश्यक तत्त्व नहीं है यह सोचकर उन्होंने इस्लाम और हिन्दू धर्मको एक करना शुरू किया। किन्तु उसका बहुत असर नहीं हुआ और वह एक अलग पंथ होकर रह गया जो अभीतक देखनेमें आता है। कुछ बरसों बाद पंजाब में गुरु नानक हुए। उन्होंने वहीं कबीरका तर्क मानकर, दोनों धर्मोंको एक करनेका विचार पसन्द किया; किन्तु उसके साथ-साथ उनका खयाल यह भी था कि जरूरत पड़े तो इस्लामका तलवारसे मुकाबला करके हिन्दू धर्मकी रक्षा की जाये। इसीमें से सिक्ख धर्म उत्पन्न हुआ और लड़नेवाले सिक्ख तैयार हुए। इस सबका नतीजा यह हुआ है कि भले ही इन दिनों भारतमें हिन्दू और मुसलमान ऐसे दो मुख्य धर्म हैं, फिर भी दोनों कौमें हिल-मिलकर रहती हैं और दोनों एक-दूसरेकी भावनाको चोट न पहुँचे, ऐसा बर्ताव करती हैं। हाँ, राजनीतिक संघर्ष और उत्तेजनासे खटास उत्पन्न होती है। हिन्दू योगी अथवा मुस्लिम फकीरके बीच बहुत थोड़ा अन्तर देखने में आता है।

पैगम्बर यीशु खीस्त

इस तरह जब इस्लाम और हिन्दू धर्ममें प्रतिद्वन्द्विता चल रही थी उसी बीच लगभग ५०० वर्ष पहले ईसाई गोवाके बन्दरगाहमें उतरे और हिन्दुओंको ईसाई बनाने लगे। उन्होंने भी कुछ बलपूर्वक और कुछ समझाकर काम लेनेकी पद्धति अपनाई। उनमें कई पादरी अत्यन्त कोमल और दयालु थे। उनको सन्त कहें तो भी गलत नहीं होगा। उनका असर फकीरोंकी तरह हिन्दू जातिके निचले वर्णोंपर बहुत हुआ। परन्तु बादमें जब ईसाई धर्म और पश्चिमी सभ्यताका गठबन्धन किया गया तब हिन्दुओंने ईसाई धर्मको पसन्द नहीं किया। और आज हम देखते हैं कि उनके ऊपर एक बहुत बड़ी ईसाई शक्तिका राज्य होनेपर भी बिरला ही हिन्दू ईसाई धर्म स्वीकार करता है। फिर भी ईसाई धर्मका असर हिन्दू धर्मपर बहुत अधिक हुआ है। उन पादरियोंने ऊँचे प्रकारका शिक्षण दिया, हिन्दू धर्मकी बड़ी-बड़ी कमियाँ बताई और परिणाम यह हुआ कि कवीर जैसे दूसरे हिन्दू शिक्षक पैदा हुए और उन्होंने ईसाई धर्ममें जो अच्छा था उसे सीखना शुरू किया और हिन्दुओंकी कमियाँ दूर करनेका आन्दोलन चलाया। राजा राममोहनराय, देवेन्द्रनाथ ठाकुर और केशवचन्द्र सेन ऐसे ही व्यक्ति थे। पश्चिम भारतमें दयानन्द सरस्वती हुए और वर्त्तमानकाल में भारतमें ब्रह्मसमाज और आर्यसमाज बने। यह निश्चय ही ईसाई धर्मका असर है। फिर श्रीमती ब्लेवेट्स्कीने[] भारतमें आकर हिन्दू-मुसलमान दोनोंको पश्चिमी सभ्यताके दोषोंसे परिचित कराया और उन्हें समझाया कि उसपर आसक्त नहीं होना चाहिए।

हिन्दू धर्मके तत्त्व

इस तरह आपने देखा कि हिन्दू धर्मपर तीन आक्रमण—बौद्ध, इस्लाम और ईसाई धर्मके हुए। किन्तु कुल मिलाकर देखें तो हिन्दू धर्म उनसे उबरकर निकला है। हरएक धर्ममें जो अच्छाई थी उसे उसने ग्रहण करनेका प्रयत्न किया है। जान लेना चाहिए। ईश्वर है। वह अनादि है। निर्गुण है। निराकार है। सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान है। उसका मूल स्वरूप ब्रह्म है। वह करता नहीं है, कराता नहीं है। वह सत्ता नहीं चलाता। वह आनन्दरूप है और उसके द्वारा ही सारी सृष्टिका पालन होता है। आत्मा है, सो देहसे पृथक् है। वह भी अनादि है, अजन्म है। उसके मूल स्वरूप और ब्रह्ममें भेद नहीं है। किन्तु

  1. थियोसोफिकल सोसाइटीकी संस्थापिका।