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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सारी कठिनाई दो सीधे-सादे विधेयकोंसे दूर की जा सकती है। एकसे तो तमाम व्यापारिक परवानोंका नियंत्रण स्थानिक संस्थाओंको सौंप दिया जाये; हाँ, विशेष मामलोंमें सर्वोच्च न्यायालयको पुनर्विचार करनेका अधिकार रहे; और दूसरेके द्वारा, केप प्रवासी अधिनियमके आधारपर उपनिवेश में प्रवासका विनियमन कर दिया जाये।

श्री हिल्सके एक और कथनमें भूल सुधार करना आवश्यक है। स्टारमें एक वक्तव्य प्रकाशित करके इस कथनको चुनौती दी गई थी कि पीटर्सबर्ग में १३ गोरे वस्तु-भंडार मालिक हैं और उनके विरुद्ध ४९ भारतीय वस्तु-भंडार मालिक। इसके बाद कमसे कम कुछ तो सावधानी जरूरी है। ब्रिटिश भारतीय संघने निश्चयात्मक रूपसे प्रकट किया है[१] कि उस शहरमें केवल २३ भारतीय वस्तु-भंडार हैं। श्री हिल्सने जिन श्री क्लाइनेनबर्गकी नकल की है वे उस कथनका खंडन नहीं कर सके। इसलिए श्री हिल्सके लिए जरूरी है कि वे श्री क्लाइनेनबर्ग से दरियाफ्त कर लें कि क्या उन्होंने स्टार में जो आँकड़े दिये थे उनकी पुष्टि की जा सकती है। अब तक ब्रिटिश भारतीय संघका ही कथन अंतिम है। यह अत्यन्त महत्त्वर्ण है कि जो लोग लोकमतके नेतृत्वके जिम्मेदार हैं वे अपने सामने सच्ची बातें ही रखें, सच्ची बातोंके अलावा और कुछ नहीं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-४-१९०५

३४५. ऑरेंज रिवर कालोनी

जोहानिसबर्गके कर्मठ ब्रिटिश भारतीय संघका पत्र[२] अन्यत्र मिलेगा। यह पत्र ऑरेंज रिवर कालोनीके उपनिवेश-सचिवको उपनिवेशकी एशियाई विरोधी प्रवृत्तियोंके सम्बन्धमें भेजा गया है। इस लोकापवादके मामलेमें कदम उठाने के लिए हमें संघको अवश्य ही बधाई देनी चाहिए। अबतक हमें नगरोंके विनियमोंकी ओर ध्यान आकर्षित करना पड़ा है। ये विनियम जिस छूटके साथ बने और काम में आये, उससे हिम्मत पाकर ब्लूमफोंटीनकी नगरपालिकाने अब एक अध्यादेश बनवा लिया है। इसके द्वारा उसे लगभग वे ही अधिकार प्राप्त हो गये हैं, जो कि उपनिवेशके अनेक नगरोंमें उन विनियमोंके द्वारा हड़प लिये गये हैं, जिनकी ओर इस पत्र द्वारा अनेक बार ध्यान आकर्षित किया जा चुका है। अध्यादेशके पास होनेसे मालूम होता है कि उसकी एशियाई विरोधी उपधाराएँ साम्राज्यके उपनिवेश मन्त्रीने स्वीकार कर ली हैं। जैसा कि ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षने अपने पत्र में कहा है, निस्सन्देह ऐसा कानून "पतनकारी, अन्यायपूर्ण और अपमानजनक" है। और, "ऑरेंज रिवर कालोनीकी इस प्रकारकी रंगदार विरोधी प्रवृत्ति ब्रिटिश परम्पराओं और स्वर्गीया महारानीके मन्त्रियों द्वारा बार-बार की गई घोषणाओंके विरुद्ध है।"

हम देखते हैं कि सर मंचरजी[३] श्री लिटिलटनसे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके सम्बन्धमें फिर-फिर प्रश्न पूछ रहे हैं। हम मानते हैं कि यद्यपि ऑरेंज रिवर कालोनी में यह प्रश्न अभीतक सक्रिय रूपसे ब्रिटिश भारतीयोंके मार्ग में बाधक नहीं हुआ है, फिर भी यदि वे इसे संजीदगीके साथ उठायेंगे तो उन्होंने दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंकी जो अनेक सेवाएँ की हैं, उनमें यह कार्रवाई और जुड़ जायेगी। हम उस दिनके आगमनके बारेमें निराश नहीं हैं, जब कि भारतीयोंको एक उचित अनुपातमें उस उपनिवेशमें बसने दिया जायेगा। इस समय भी वहाँ शायद २०० भारतीयोंसे कम न होंगे, जो उपनिवेशके भिन्न-भिन्न शहरोंमें रहकर अपनी आजीविका उपार्जित कर रहे हैं। हम

  1. देखिए, "पत्र : स्टारको" दिसम्बर २४, १९०४ से पूर्व।
  2. देखिए "पत्र : उपनिवेश-सचिवको," अप्रैल ११, १९०५।
  3. लन्दनके दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष।