विचार होना चाहिए। लॉर्ड मिलनरने श्री चेम्बरलेनको[१] आश्वासन दिया है कि पुराने कानूनपर ट्रान्सवालकी सरकार पहलेकी तरह सख्तीसे अमल नहीं करेगी। उनके इस कथनका हमने आदरपूर्वक प्रतिवाद कर दिया है, क्योंकि वास्तविकता इसके विरुद्ध है। भारतीयोंके प्रवेशका प्रश्न हमारे कथनका प्रत्यक्ष प्रमाण है। क्योंकि, पिछली हुकूमतके जमाने में भारतीयोंके प्रवेशपर जहाँ किसी प्रकारकी रोक नहीं थी, वहाँ अब शरणार्थियोंको भी बहुत मुश्किलसे कहीं इक्के-दुक्के लौटने दिया जाता है। और गैर-शरणार्थी भारतीयोंके लिए तो ट्रान्सवालके दरवाजे एकदम बन्द है। इस प्रकार ट्रान्सवाल-सरकार केवल पुराने एशियाई-विरोधी कानूनसे ही आगे नहीं बढ़ जाती है, बल्कि इस विषयमें तो उसने नेटाल और केपके कानूनोंको भी बहुत पीछे छोड़ दिया है। नेटाल और केपके उपनिवेशोंमें जो भारतीय बस गये हैं वे जब चाहें, स्वतन्त्रतापूर्वक अपने उपनिवेशसे बाहर जा सकते हैं, और लौट भी सकते हैं। और जो यूरोपीय भाषाओंमें से कोई एक भी भाषा जानते हैं वे—चाहे पहले उपनिवेशके निवासी रहे हों या न भी रहे हों— इन दोमें से किसी भी उपनिवेशमें आकर बस सकते हैं। लॉर्ड मिलनरने सुझाया है कि ट्रान्सवालके १८८५ के कानून ३ की जगह नेटाल कानूनके नमूनेपर कानून बनाया जाय। इसलिए क्या हम सुझायें कि कमसे-कम अभी तत्काल नेटाल और केपके कानूनोंके अनुसार जो अर्जदार प्रवेश पानेके अपात्र न हों, उन्हें बगैर रोक-टोकके ट्रान्सवालमें आने दिया जाये? और शरणार्थियोंको भी उनकी तरफसे अर्जी आते ही प्रवेश मिल जाया करे? केप और नेटालके कानूनोंमें एक और सुविधा यह है कि जो पहलेके निवासी नहीं है और जो किसी यूरोपीय भाषाकी आवश्यक शैक्षणिक योग्यता नहीं रखते, किन्तु अन्य प्रकारसे प्रवेश पानेके योग्य है, उन्हें भी विशेष आज्ञासे प्रवेश मिल सकता है। इसके अलावा, ऐसे लोगोंको भी, उदाहरणार्थ, पुराने निवासियोंके लिए आवश्यक घरेलू नौकरों और दुकानोंके लिए गुमाश्तों वगैराको भी, स्वतन्त्रतापूर्वक प्रवेशकी अनुकूलता होनी चाहिए। हम समझते हैं कि ये माँगें अत्यन्त उचित है। इनसे भारतीयोंकी भावनाओंको बड़ा समाधान मिलेगा। और जैसा कि हम पहले ही सुझा चुके हैं, भारतीयोंके अनियन्त्रित प्रवेशका अथवा गैर-शरणार्थी अर्जदारोंकी बाढ़के आनेका कोई प्रश्न ही नहीं है, हम आशा करते हैं कि सरकार इन सुझावोंपर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी।
इंडियन ओपिनियन, २२-१०-१९०३
- ↑ जोजेफ़ चेम्बरलेन (१८३६-१९१४), उपनिवेश-मंत्री, १८९५-१९०३ देखिए, खण्ड १, पृष्ठ ३९२।