३४७. खानोंमें भारतीय
श्री लिटिलटनने खानोंमें भारतीयोंके प्रति व्यवहारके बारेमें सर मंचरजी मेरवानजी भाव नगरीके प्रश्नका ब्रिटिश संसदमें उत्तर दे दिया। यह उत्तर अत्यन्त असंतोषजनक है। श्री लिटिलटनने कहा कि उन्हें यह जानकारी नहीं कि जाँचके लायक कोई बात है। किन्तु जब ताजे मामलोंकी खबरें उनतक पहुंचेंगी तब संभवतः वे अपनी राय बदल देंगे। ऐसे अरुचिकर मामलोंका लगातार होते रहना खुद कड़ी और निष्पक्ष जाँचके लिए बिलकुल पर्याप्त कारण है। श्री लिटिलिटनने यह भी कहा कि नेटालमें एक भारतीय संरक्षक है। ऐसा कहने से उनका आशय यह था कि उसीको इस मामलेको पेश करना था। किन्तु उसने यह मामला पेश किया हो, यह हमने नहीं सुना। नेटाल विटनेस श्री लिलिटलटनके इस उत्तरपर टिप्पणी करते हुए इसे असन्तोषजनक मानता है, और इस सम्बन्ध में जाँचकी माँग दुहराता है। भारतीय संरक्षकके बारेमें विटनेस लिखता है :
- हम जानते हैं कि ऐसा एक अधिकारी है; किन्तु खानोंमें नियुक्त भारतीयोंका कहना है कि उन्हें उसके पास जाने नहीं दिया जाता, और यह खुद ऐसी बात है जिसकी जाँचकी जरूरत है।
वह यह भी लिखता है :
- यदि हमारी सरकार इन मामलोंमें अपने कर्त्तव्य को स्वीकार करनेमें चूकती है तो आशा करनी चाहिए कि इंग्लैंडमें यह प्रश्न आँखोंसे ओझल नहीं किया जायेगा, और वहाँसे ठीक दिशामें प्रभाव डाला जायेगा। किन्तु यदि ऐसे किसी दबावके बिना ही जाँच कराई जायेगी और घिनौने आरोप अन्तिम रूपसे सिद्ध या असिद्ध कर दिये जायेंगे तो यह ज्यादा अच्छा होगा।
हमें आशा है कि ये मामले भारत सरकारके ध्यानमें लाये जायेंगे। वह अपने पूर्व अनुभव के कारण श्री लिटिलिटनकी तरह सरलतासे सन्तुष्ट न होगी। किन्तु, सबसे अच्छी बात नेटाल सरकारके लिए यह होगी कि वह हमारे सहयोगीके सुझावके अनुसार स्वयं पहल करके जाँच कराये और अविलम्ब मामले की तहतक छानबीन करे।
- [अंग्रेजीसे]
- इंडियन ओपिनियन, २२-४-१९०५