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३४९. ईस्ट लंदन में भारतीय

ईस्ट लंदन में भारतीयोंके पैदल पटरियोंपर चलने और नगरमें रहनेपर कुछ प्रतिबन्ध हैं। वहाँका कानून ऐसा है कि जो भारतीय जमीनके मालिक हों अथवा अच्छे किरायेदार हों वे शहरमें आजादीसे रह सकते हैं। किन्तु नगर परिषदसे उन लोगोंको पास प्राप्त कर लेना चाहिए। जो माँगे, उसे पास देनेके लिए टाउन क्लार्क बँधा हुआ है। भारतीयोंने आम तौरसे इस प्रकार पास लेनेमें आनाकानी की। डेढ़ वर्ष तक जूझते रहे और काम चलता रहा; किन्तु जब नगरपरिषदने मुकदमा दायर कर दिया तब मजिस्ट्रेटने नगर परिषदके हकमें फैसला दिया। इसके विरोधमें भारतीयोंने अपील की। उसमें यह मुद्दा रखा कि वे "एशियाई" नहीं हैं, परन्तु भारतमें बादमें जाकर बसे हैं। वे "आर्य" हैं। हमें इस मौकेपर कहना चाहिए कि हमारे भाइयोंने इस मुकदमे में पैसे बरबाद किये और अपनी हँसी कराई। "आर्य हैं" इत्यादि बात सही है। परन्तु अदालत में इस प्रकारकी दलील देनेसे नुकसान ही होता है, और हुआ भी।

ईस्ट लंदनका कानून जब बना उस समय जागने की जरूरत थी। बने हुए कानूनोंको रद कराना बहुत मुश्किल होता है। अब हमारी सलाह है कि चुपचाप कानूनका पालन करके प्रमाणपत्र ले लेना चाहिए। दूसरी जगहों, जैसे ट्रान्सवाल आदिकी तुलना में ईस्ट लंदनमें अब भी स्थिति बेहतर है। कानूनके अनुसार चलें और तब भी लड़ाई लड़ते रहें। परन्तु वह लड़ाई संसदकी मार्फत लड़नी चाहिए। ईस्ट लंदन में हमारे पास वोटकी ताकत और वोटका हक है। इसलिए उसका ठीक उपयोग करनेसे अच्छा परिणाम निकलेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-४-१९०५

३५०. गिरमिटिया भारतीय

नेटालके गवर्नमेंट गज़टसे पता चलता है कि प्रत्येक व्यक्तिपर ३ पौंडका जो कर लगाया गया है उसके लागू होनेके बाद सन् १९०४ के दिसम्बरकी ३१ वीं तारीखतक ११,१७५ मर्द और ५,३३४ औरतें गिरमिटसे मुक्त हुए। उनमें से ७,५८५ मर्दोने और १,८४५ औरतोंने ३ पौंडका कर दिया है। अर्थात् मुक्त होनेवाले गिरमिटियोंमें से ५० प्रतिशतने प्रति व्यक्ति लगाया गया यह कर सरकारको दिया है। और वे लोग इस समय कालोनी में नौकरी अथवा दूसरा धन्धा करते हैं।

इन व्यक्तियोंसे सरकार २८,२९० पौंडकी उगाही कर चुकी है। इसपर विचार करें तो यह कोई मामूली रकम नहीं है। ब्रिटेनकी रियायाको ऐसी सजा दी जाती है, यह बहुत दुःखकी बात है। लेकिन जहाँ चारा न हो वहाँ सन्तोष कर लेना पड़ता है। लॉर्ड कर्ज़नके लगाये हुए हिसाबके अनुसार प्रत्येक भारतीयकी औसत वार्षिक आय ३० रुपयेकी होती है। मतलब यह हुआ कि यह कर हिन्दुस्तानमें हिन्दुस्तानीकी औसत आयसे डेढ़ गुना अधिक है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-४-१९०५