रहते हैं और पैसे बचानेके लिए अथवा आलस्यके कारण खुराक घटिया अथवा कम खाते हैं। बहुत-से मनुष्य सड़े हुए आटेकी कच्ची-पक्की सिकी रोटीपर गुजर करते हैं। ऐसे आहारका परिणाम खराब निकलना अजीब नहीं है।
- [गुजरातीसे]
- इंडियन ओपिनियन, २९-४-१९०५
३५५. पत्र : छगनलाल गांधीको
२१-२४ कोर्ट चेम्बर्स
नुक्कड़, रिसिक व ऐंडर्सन स्टीट्स
पॉ॰ अ॰ बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
मई १, १९०५
मार्फत इन्टरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस
फीनिक्स
चि॰ छगनलाल,
तुम्हारे पत्र मिले। कुछ दिनोंसे मैं तुम्हें चिट्ठी नहीं दे पाया। मैंने कल तुम्हें गुजराती सामग्री भेजी है। मैं जानना चाहता हूँ कि मैं जो भेजता हूँ वह काफी है या नहीं। काफी हो तो और भी भेज सकता हूँ; मगर उस हालत में दरअसल मुझे इंडियन रिव्यू और कुछ गुजराती पत्र भेजे जाने चाहिए।
मैंने शाहके साथ कूनेकी दो रोटियाँ, कुछ बिस्कुट, मिठाई, केक और पापड़ भेजे थे। रोटियाँ एक-एक बीन और वेस्टके लिए थीं और बाकी चीजें तुम्हारे लिए। मालूम नहीं ये सब चीजें तुमको मिलीं या नहीं। क्या तुमने डर्बनसे मिठाइयाँ भेजी थीं? अगर भेजी हों तो अब फिर वैसा न करना। यह बिलकुल गैरजरूरी है और मैं घरको बहुव्यंजनके चलन से बचाना चाहता हूँ।
मुझे पोपके व्याकरणका पहला भाग भेज दो। मगर वह अंग्रेजी और तमिल दोनोंमें हो। क्या यह नया प्रकाशित संस्करण है? अगर नहीं है तो उसे न खरीदना। मेरा खयाल है, पिछले बरस नया संस्करण प्रकाशित हुआ था। अगर वे पहले देखनेके लिए दे सकें तो तीनों भाग भेज दो। तीस शिलिंग जमा कर दो। यदि वे मुझे उपयोगी नहीं लगते तो वे पैसा वापस करके किताबें ले लें। श्री साइमनसे मुझे एक तमिल अंग्रेजी शब्दकोश मिल गया है। अब मुझे सिर्फ एक अच्छे व्याकरणकी जरूरत है।
आशा है कि तमिल और हिन्दीके सवालपर किचिनसे तुम्हारी बात हो चुकी होगी। तुमने कह दिया होगा कि मौजूदा हालत में एकको भी नामंजूर नहीं कर सकते। एम॰ सी॰ सी॰ ऐंड कं॰[१] जो रुक्के चाहती है, मैंने उसे उनके बारेमें लिख दिया है। इसके साथ आज तकका वक्तव्य[२] प्रेसके लिए भेज रहा हूँ। मैं यह जानना चाहूँगा कि मैनरिंगकी गैरहाजिरीमें