३५७. ट्रान्सवालका संविधान
जबसे ट्रान्सवालका संविधान प्रकाशित हुआ है तबसे दक्षिण आफ्रिकामें हरएक की जबानपर उसकी ही चर्चा है। लोगोंका जितना ध्यान इस संविधानकी ओर आकर्षित हुआ है, उतना किसी अन्य ब्रिटिश उपनिवेशीय संविधानकी ओर आकर्षित हुआ हो, यह हमें याद नहीं आता। हर समाचारपत्रने इसपर सम्पादकीय प्रकाशित किये हैं; दक्षिण आफ्रिकाके प्रत्येक महत्त्वपूर्ण व्यक्तिने उसपर अपना मन्तव्य दिया है और उक्त संविधानके सम्बन्धमें प्रकट की गई सम्मतियोंका सार कुल मिलाकर प्रशंसात्मक ही जान पड़ता है; यद्यपि उसमें कुछ विरोधी आलोचना भी है। वास्तवमें लॉर्ड मिलनरने जोहानिसबर्ग में अपने विदाई भाषण में ऐसे परिणामकी पूर्व कल्पना कर ली थी। उन्होंने कहा था कि यह संविधान कदाचित् पूरी तरह किसी को भी सन्तुष्ट नहीं कर सकेगा, किन्तु सब निष्पक्ष व्यक्ति इसे अंग्रेजों और बोअरोंको एक दूसरेके समीप लाने तथा निकट भविष्य में जनताको पूर्ण स्वराज्यके लिए तैयार करनेके सच्चे प्रयत्नके रूपमें ग्रहण करेंगे।
तफसीलके बारेमें की गई आपत्तियाँ ऐसी आपत्तियाँ हैं जो हमारी रायमें, अन्य स्वशासित उपनिवेशोंके संविधानोंकी जानकारीके अभावमें की गई हैं। बात यह है कि यद्यपि स्वराज्य अथवा अन्य प्रातिनिधिक संस्थाओंकी प्राप्तिके लिए जोरदार आन्दोलन किये जाते रहे हैं; किन्तु पहले तफसीलकी जाँच इतनी बारीकीसे कभी नहीं की गई। लोग अबतक एक सिद्धान्तकी स्वीकृति- मात्रसे सन्तुष्ट हो जाया करते थे; किन्तु हम देखते हैं कि आज वे हर तफसील अपने खयालातके अनुसार रखनेका आग्रह करते हैं। इसलिए विधानके बारेमें ताज द्वारा निषेधाधिकार सुरक्षित करने की बातका इतनी गम्भीरता से विरोध किया जाता है। किन्तु यदि स्वशासित उपनिवेशोंके संविधानोंकी जाँच-पड़ताल करनेकी तकलीफ उठाई जाये तो यह मालूम हो जायगा कि निषेधाधिकार सदा ही सुरक्षित रखा गया है और कभी-कभी उसका उपयोग भी किया गया है। उदाहरणार्थ, जब आस्ट्रेलिया सरकारने एशियाइयोंको एशियाई होने के नाते अलग रखनेका एशियाई विरोधी अधिनियम बनाया तब श्री चेम्बरलेनने उस अधिनियमको अस्वीकार करनेमें कोई आगा-पीछा नहीं किया; और ऐसा ही नेटालमें भी हुआ। उत्तरदायी मन्त्रिमण्डल द्वारा भारतीयों को भारतीय होनेके नाते मताधिकारसे वंचित करनेके लिए की गई पहली कार्यवाहीकी लॉर्ड रिपनने मुस्तैदीसे रोकथाम की थी। उत्तरदायी शासनसे पूर्व आजतक जितने संविधानोंके मंजूर होनेकी हमें जानकारी है उनमें ट्रान्सवालका संविधान शायद सबसे अधिक उदारतापूर्ण है। यह तथ्य सहूलियत के साथ भुला दिया गया है। दूसरी आपत्ति यह है कि ऑरेंज रिवर उपनिवेशके साथ वही व्यवहार नहीं किया गया है जो ट्रान्सवालके साथ किया गया है। इसका सम्बन्ध समस्त शासनके मूलसे है। जबतक ब्रिटेन प्रमुख शक्ति है और जबतक शासन सत्ताएँ अन्ततः शक्ति पर निर्भर करती हैं, तबतक प्रस्तुत स्थितियोंमें जो कुछ अपरिहार्य है, उससे असन्तोष प्रकट करना निरर्थक है।
संविधानके निहित गुण-दोषोंके सिवा, सबसे मुख्य बात तो लॉर्ड लिटिलटनका वह खरीता है जिसने स्वयं संविधानकी भूमिकाका काम दिया है। वह एक ब्रिटिश मन्त्रीके योग्य मानवतापूर्ण प्रलेख है।
विशुद्ध भारतीय दृष्टिकोणसे विचार करें तो यह अनुभव न करना कठिन है कि ब्रिटिश भारतीय और उसी तरह रंगदार ब्रिटिश लोग केवल सौतेली सन्तान हैं और वे उपेक्षित छोड़