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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४८८

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


दिये गये हैं। उपनिवेश सम्बन्धी मामलों में उनकी बात नहीं पूछी जाती। वे जानबूझकर पृथक् करके अपमानित किये जाते हैं। श्री लिटिलटन कहते हैं :

महामहिमकी सरकार, १९०२ की सन्धिकी शर्तोंके लिहाजसे महामहिमकी रंगदार प्रजाको प्रतिनिधित्व देनेकी व्यवस्था करनेमें असमर्थ रही है।

और यहाँ इसपर ध्यान दिया जाना चाहिए कि श्री लिटिलटनने भी "वतनी" शब्द के अन्तर्गत अन्य लोगोंको लेनेकी आम गलती की है। सन्धिकी शर्तोंमें केवल दक्षिण आफ्रिकाके वतनियोंका उल्लेख है। तब फिर यह निष्कर्ष क्यों निकाला गया कि उसमें अन्य रंगदार लोग शामिल हैं? श्री लिटिलटन आगे कहते हैं :

तथापि आबादीके जिन अंशोंको विधानसभामें सीधा प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, उनके हितों की रक्षाके लिए आजकी तरह गवर्नरको अपनी हिदायतोंसे ऐसे किसी भी विधेयकको सुरक्षित रखना आवश्यक होगा जिसके द्वारा गैर-यूरोपीय लोगोंपर वे रुकावटें और निर्योग्यताएँ लगाई जा सकती हों जो जन्मजात यूरोपीय लोगोंपर लागू न हों।

आशा की जाती है कि इस रक्षित अधिकारका व्यवहार पूरा-पूरा किया जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-५-१९०५

३५८. भारतीयोंकी शिक्षा

नेटालकी संसद में शिक्षाके सम्बन्ध में बोलते हुए संसद सदस्य श्री विलशायरने कहा कि सरकारको भारतीयोंकी शिक्षाके लिए अधिक साधन उपलब्ध करने चाहिए। भारतीयोंको शिक्षाकी आवश्यकता है और जिन भारतीयोंका जन्म नेटालमें हुआ है उनके प्रति सरकारकी जिम्मेदारी खास है। इस भाषणके लिए हमें इन सज्जनका आभार मानना चाहिए। ज्यों-ज्यों शिक्षाका प्रसार अधिक होगा त्यों-त्यों हर प्रकारसे हमारी स्थितिमें सुधार होनेकी सम्भावना है। आखिर अपना कर्त्तव्य पूरा किये बिना सरकारका छुटकारा नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि लेडीस्मिथ में भारतीयोंकी अलग पाठशाला नहीं है, इसीलिए सरकारने अच्छी स्थितिके भारतीयों के बच्चोंको वर्त्तमान पाठशालामें प्रविष्ट करनेकी स्वीकृति दे दी है।

ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर कालोनीके शिक्षा विभागके भूतपूर्वं अधीक्षक श्री आर्जेटने ऑरेंज रिवर कालोनी में भाषण देते हुए कहा कि वे काफिरों (हब्शियों) की शिक्षाके लिए बसूटोलैंड में विशेष प्रयास करेंगे। औद्योगिक शिक्षाकी ओर उनका ध्यान पर्याप्त है। भारतीयोंकी शिक्षाके प्रति भी उनका खयाल बहुत सहानुभूतिपूर्ण था और वे ट्रान्सवालमें उनके बच्चों के लिए पाठशालाएँ स्थापित करनेका प्रयास सदा करते रहे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-५-१९०५