३६१. पत्र : छगनलाल गांधीको
२१-२४ कोर्ट चेम्बर्स
नुक्कड़, रिसिक व ऐंडर्सन स्टीट्स
पो॰ ओ॰ बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
मई ११, १९०५
मार्फत इन्टरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस
फीनिक्स
चि॰ छगनलाल,
तुम्हारा पत्र मिला। काबाने मुझे लिखा है कि वे जब रवाना होना चाहते थे तब रवाना नहीं हो सके। वे १९ अप्रैलको जरूर रवाना हो चुके होंगे। उनका जो पत्र अभी मिला है उसमें उन्होंने लिखा है कि वे अपनी पत्नीको साथ नहीं ला रहे हैं। वे अपने साथ शायद हरिलाल और गोकुलदासको लायें; मगर चूँकि उनका कोई तार नहीं आया है, इसलिए मेरा यह खयाल नहीं कि वे रवाना हुए हैं। मुझे ऑर्चर्ड बहुत असन्तुष्ट जान पड़ते हैं। तुमने उनके बारेमें कुछ नहीं कहा है। मेहरबानी करके मुझे बताओ कि क्या बात है। आनन्दलालकी[१] एक अजीब चिट्ठी मिली है। उनका कहना है कि वे अकेले रहते हैं और चाहते हैं कि जिन कमरोंमें बीन रहते थे मैं उन्हें उनमें रहने दूँ। इसका कारण क्या है? तुम इस विषयमें चुप्पी क्यों साधे रहे? श्री एम॰ सी॰ कमरुद्दीनकी पेढ़ीने मुझे अपने ब्यौरे भेज दिये हैं। एक ९२ पौंड २ शिलिंग ११ पैंस का किराये के बाबत है और दूसरा २३८ पौंड ९ शिलिंग २ पैंसका दूसरे सामानके बाबत! क्या तुमने उन्हें जाँच लिया है? लन्दनसे आये हुए मालके मूल बीजक तुम्हारे पास हैं या नहीं? मैं उन्हें किराये के हिसाबकी रकमका ड्राफ्ट भेज रहा हूँ। अलबत्ता हिसाबमें कोई भूल-चूक होगी तो उसमें सुधार होगा ही। मेरे पास फिलहाल कुछ पैसा है, इसलिए मैं पारसी रुस्तमजीको ५०० पौंड भेज रहा हूँ ताकि वे उसका उपयोग कर सकें और जब तुम्हें रुपये की जरूरत पड़े तो तुम उनसे कुछ ले सको।
शुभचिन्तक,
[मो॰ क॰ गांधी][२]
- मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ४२३७) से। सौजन्य : श्री अरुण गांधी, बम्बई।