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३६२. पत्र : उमर हाजी आमद झवेरीको

[जोहानिसबर्ग]
मई ११, १९०५

श्री उमर हाजी आमद
बॉक्स ४४१
डर्बन

श्री सेठ उमर हाजी आमद

आपका पत्र मिला। अब्दुल्ला सेठ के बारेमें बहुत दुःखी हूँ। कृपया दादा सेठको कहें कि अगर वे मुझे बुलायें तो बगैर पैसे आनेके लिए कहकर संकोचमें न डालें। फीनिक्समें रुपया खर्च हो जानेसे मुझे बहुत सोच-विचार कर चलना पड़ता है।

मो॰ क॰ गांधीके सलाम

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ १०।

३६३. सर आर्थर लाली और ब्रिटिश भारतीय

परमश्रेष्ठ उच्चायुक्त एक कृषि प्रदर्शनीके सम्बन्धमें पीटर्सबर्ग आये हुए हैं। ब्रिटिश भारतीयोंने उक्त अवसरसे लाभ उठाकर उन्हें राजभक्तिपूर्ण अभिनन्दनपत्र दिया। यह कार्य प्रशंसनीय है। उन्होंने अभिनन्दनपत्र के उत्तरमें सर आर्थर लालीसे भारतीय प्रश्नके सम्बन्धमें कुछ बातें कहलवा लीं। बताया जाता है कि परमश्रेष्ठने यह कहा,

इस समय सरकारके सामने जो कठिनाइयाँ उपस्थित हैं उनमें इस देशमें ब्रिटिश भारतीयोंके दर्जेंसे सम्बन्धित कठिनाईसे बड़ी अन्य कोई कठिनाई नहीं है। सरकार अनुभव करती है कि उन्होंने भारतमें और अन्य भागों में साम्राज्यकी विशिष्ट और गौरवास्पद सेवाएँ की हैं। सरकार उनकी कीमतको भलीभाँति जानती है। परन्तु इस देशके लोग यह मानते हैं कि भारतीयोंकी स्थिति यहाँ वैसी नहीं है जैसी उस देशमें है जिससे वे आये हैं। रंगदार वर्गोंके साथ जो पुराना इतिहास जुड़ा है उसके कारण यहाँ लोगोंके मनमें पूर्वग्रह उदित हो गये हैं और भारतीयोंकी उपस्थितिपर एक बिलकुल ही अलग दृष्टिकोणसे विचार किया जाता है। उन्हें भरोसा है कि भारतीय इसे अवश्य स्वीकार करेंगे। निष्पक्ष रूपसे न्याय करना सरकारका कर्त्तव्य है और ब्रिटिश सरकार और औपनिवेशिक प्रशासनके बीच अभीतक इस प्रश्नपर पत्र-व्यवहार हो रहा है।

हम भारतकी साम्राज्यके प्रति सेवाओंको मान्य करनेके लिए सर आर्थर लालीको धन्यवाद देते हैं। किन्तु हमें यह कहते हुए दुःख होता है कि इस मान्यताका परिणाम प्रायः नगण्य है। हम परमश्रेष्ठ द्वारा श्री लिटिलटनको दी गई इस सलाहको स्मरण किये बिना नहीं रह सकते कि ब्रिटिश भारतीयोंसे जो वादे अज्ञानवश किये गये थे उन्हें पूरा करनेके बजाय तोड़ देना ज्यादा