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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

केप विधानसभाके द्वारा स्वीकृत हो गया तो यह ठीक दिशामें एक कदम होगा। तम्बाकू पीना किसी भी हालत में कोई वांछनीय या स्वच्छ आदत नहीं है। और मुमकिन है किसी विशेष स्थितिमें उसका कुछ उपयोग हो और उससे किसी दर्द में भी बहुत राहत मिलती हो; किन्तु तम्बाकू पीनेकी आदत बालकोंके लिए बेशक नुकसानदेह है और उसे समस्त वैध साधनोंसे रोकना उचित है। विधेयक शायद बुराईके व्यापक अस्तित्वका प्रमाण है। वस्तुतः यह आदत तार चपरासियों और हरकारोंमें, जिनकी आयु १६ वर्षसे बहुत कम होती है, अक्सर देखी जाती है। बच्चोंके धूम्रपानके पक्ष में प्रायः यह भ्रामक तर्क दिया जाता है कि जब वह वयस्कोंके लिए अच्छा है तो बालकोंके लिए बुरा नहीं हो सकता। किन्तु तार्किक सज्जन यदि क्षण-भर सोचें तो उन्हें विश्वास हो जायेगा कि जो चीज एकके लिए अच्छी होती है वह अनिवार्यतः दूसरेके लिए अच्छी नहीं होती; और तम्बाकू एक ऐसी चीज है जिसका व्यवहार बालकोंको निर्भयतापूर्वक नहीं करने देना चाहिए। इससे उनके शरीर में घुन लग जाता है और मानसिक शक्ति कमजोर पड़ जाती है। इसलिए हम आशा करते हैं कि श्री श्राइनर केप विधानसभाको यह विधेयक स्वीकार करने के लिए रजामन्द कर सकेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-५-१९०५

३६५. भारतमें भूकम्प

भारतसे हालकी डाकमें प्राप्त ताजे समाचारोंसे यह जानकारी पूरी तरह मिलती है कि भारतमें भूकम्पसे कैसी हानि हुई है। इस ईश्वरीय प्रकोपसे भारतके उत्तरी क्षेत्रके निवासियोंपर जो मुसीबत आई है वह वर्षोंतक नहीं भुलाई जा सकेगी। अनेक पुरानी ऐतिहासिक इमारतें, अनेक गाँव और बड़े-बड़े शहरोंके मध्य मकान, गरीबोंके सादे झोंपड़े और तम्बुओंमें आबाद सैनिक छावनियाँ—सभी बरबाद हो गई हैं। कितने ही परिवारोंका नाम-निशान भी नहीं रहा है। धर्मशाला, काँगड़ा घाटी, पालनपुर और मंसूरी में सबसे अधिक हानि हुई है। इस आकस्मिक घटनाके शिकार लोगोंकी दुर्दशाका विवरण अत्यन्त करुणाजनक है। कई क्षेत्रोंसे तारका सम्बन्ध टूट गया है। इससे वहाँके लोगों की कैसी दुर्दशा हुई है इसका समाचार तक प्राप्त नहीं हो सका है। फलस्वरूप सहायता और पानी के अभाव में बिलखते हुए लोग मृत्युके ग्रास हो गये हैं। सरकारकी ओरसे बड़ी सहानुभूति प्रदर्शित की गई और सहायता के लिए खास रेलगाड़ियाँ चलाकर यथासम्भव सहायता पहुँचाई गई। संकटग्रस्त लोगोंकी सहायताके लिए भारत और इंग्लैंडमें चन्दे किये गये हैं। इनमें बड़ी-बड़ी रकमें दी गई हैं। हमारे पाठकोंको स्मरण होगा कि अपने इन रावसे रंक बने भारतीय भाइयोंके सहायतार्थ हमारी ओरसे एक कोष खोला गया है। आशा है, इसमें सभी भाई यथाशक्ति रकमें भेजकर अपना कर्त्तव्य पूरा करेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-५-१९०५