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३६७. श्री गांधीका स्पष्टीकरण[१]

मई १३, १९०५

सम्पादकजीने ऊपरका पत्र मेरे पास भेजा है, इससे मुझे प्रसन्नता हुई। श्री वावड़ाने अपना विचार बताया, इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। मैंने जो भाषण दिये उनमें मेरा एकमात्र हेतु था भारतीयोंकी सेवा करना। भारतमें हिन्दू धर्मका क्या रूप है इसका चित्र उपस्थित करनेका निमन्त्रण मुझे मिला था। उसको मैंने स्वीकार कर लिया। उस विषयका विवेचन करते हुए दूसरे धर्मोसे तुलना करना आवश्यक हो गया। किन्तु उसमें मेरा एक ही इरादा यह था कि मैं, जहाँतक बने, हर धर्मकी अच्छी बातें बताकर गोरोंके मनपर अच्छी छाप डालूँ। मैंने जो-जो तथ्य बताये वे सब उस इतिहाससे लिये गये हैं जिसे हम बचपनसे पाठशालामें पढ़ते आये हैं। इस्लामका प्रचार जोर-जबरदस्तीसे हुआ, यह बात इतिहास बताता है। किन्तु उसके साथ मैंने बताया कि इस्लामके प्रचारका प्रबल कारण है—उसकी सादगी और सबको समान समझने की खूबी। निम्नवर्गीय हिन्दू ज्यादातर मुसलमान हुए, यह बात भी सिद्ध होने योग्य है और मेरी समझ में इसमें कोई बुराई नहीं है। मेरे अपने मनमें ब्राह्मण और भंगीके बीच कोई भेद नहीं है और मैं इसमें इस्लामधर्मकी श्रेष्ठता मानता हूँ कि जो लोग हिन्दू धर्मके भेदभावसे असन्तुष्ट हुए उन्होंने इस्लामको स्वीकार करके अपनी स्थिति सुधारी है। फिर मैंने यह भी नहीं कहा कि जितने हिन्दू मुसलमान हुए वे सब नीचे वर्णके थे और नीचे वर्णमें केवल ढेढ़ ही आते हैं ऐसा तो मुझे खयालतक नहीं है। ऊँचे वर्णके हिन्दू अर्थात् ब्राह्मण और क्षत्रिय भी मुसलमान हुए हैं मैं यह स्वीकार करता हूँ, किन्तु उसमें अधिक भाग उनका नहीं था, यह जगत प्रसिद्ध बात है। परन्तु मुझे मुख्य जोर इस बातपर देना है कि नीचे वर्णके हिन्दू मुसलमान हुए इसमें इस्लाम धर्मकी तनिक भी हीनता नहीं है। उलटे यह बात उसकी खूबी बताती है और मुसलमानों को इसका गर्व होना चाहिए।

जुनून (जोश) के बारेमें मेरा मत जैसा मैंने बताया वैसा ही है। श्री बावड़ा जुनूनका अर्थ उलटा लगाते हैं। मैंने जुनून शब्दका सारार्थं लिया है और मैंने स्पष्ट कहा है कि यह इस्लामकी एक शक्ति है। सच्चे जुनूनके बिना कोई अच्छा काम नहीं हो सकता। तुर्क जब सच्चे जुनूनसे जानकी बाजी लगाकर लड़े तभी वे रूस और ग्रीसके साथ टक्कर ले सके और आज सब लोग तुर्क सिपाहियोंसे भय खाते हैं। जबतक राजपूत लोग जुनूनसे लड़े तबतक कोई राजपूतानेको हाथ भी नहीं लगा सका। जुनूनसे जापान जूझता है तभी तो वह पोर्ट आर्थरका किला सर कर सकता है।[२] जिस तरह युद्धमें, उसी तरह दूसरे कामोंमें भी जुनूनकी

  1. गांधीजीने जोहानिसबर्ग थियोसोंफिकल सोसाइटीके तत्वावधानमें "हिन्दू धर्म" पर दिये गये अपने भाषणोंमेंसे (देखिए "हिन्दू धर्म", मार्च ४ और ११, १९०५) एक में इस्लामके प्रचारकी चर्चा करते हुए कहा था कि इस्लाम धर्मको अधिकतर निम्नवर्गीय लोगोंने अपनाया। उन्होंने यह भी कहा था कि "जोश" या "जुनून" इस्लामकी एक जबर्दस्त खूबी है, जिससे कई अच्छे काम हुए हैं और कई बार बुरे भी।
    गांधीजीके इस कथनसे भारतीय मुसलमानोंमें खलबली पैदा हो गई और इसके विरुद्व इंडियन ओपिनियनके सम्पादकको कई पत्र भेजे गये। सम्पादकने इनमें से तीन पत्र गांधीजीके इस स्पष्टीकरणके साथ प्रकाशित किये थे। यह स्पष्टीकरण श्री ए॰ ई॰ वावड़ाके मई ९, १९०५ के पत्रका उत्तर है।
  2. पोर्ट आरके रूसी जहाजी बेड़ेकी जापानियोंने अगस्त १०, १९०४ को हराया।