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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सामके[१] गोली दागने के मामले में हलकी झिड़की और समझाना-बुझाना ही एक उपाय है। मैं समझता हूँ उससे अधिक कुछ नहीं किया जा सकता। किचिनके बारेमें मेरा सुझाव है, तुम्हें उनके पास जाकर पूछना चाहिए कि वे निठल्लापन क्यों दिखा रहे हैं। मैं जानता हूँ, वे बुरा न मानेंगे। बहरहाल यह अच्छा ही होगा कि तुम उन्हें भलीभाँति समझ लो। साप्ताहिक विवरणकी चिन्ता मत करो। तुम्हें तो मासिक पत्रिकाकी केवल दो और प्रतियाँ छापनी हैं। पता नहीं, पूरी रकम वसूल हो सकेगी या नहीं। फिर भी, मुझे आशा तो है कि हो जायेगी। इतना कर चुकने के बाद मुझे लगता है कि हमें बारहों अंक छाप देने चाहिए। तुम ग्यारहवाँ अंक तो अब छाप ही रहे हो; सिर्फ १२ वाँ प्रकाशनके लिए बच जायेगा। शेषके बारेमें, अगर वे चाहते हैं कि हम उन्हें प्रकाशित करें तो हम उनसे गारंटी माँगेंगे। मुझे खुशी है कि तुमको मेरे व्याख्यानोंके सम्बन्धमें गुजराती पत्र मिल गया है। अगले अंकमें उसे पूरा-पूरा छाप देना और मेरा पत्र भी।[२] इससे मालूम होता है कि हमारा पत्र बड़े चावसे पढ़ा जाता है। और यही तो हम चाहते भी हैं। कभी-कभी गलतफहमियाँ होंगी ही। परन्तु इससे हमें अपने कर्त्तव्यसे विमुख नहीं होना चाहिए। वह पत्र पहले छापा जाये और मेरा स्पष्टीकरण उसके नीच। यहाँ भी, वैसी ही कुछ चर्चा चली थी। यद्यपि मैं खुलासा करनेकी कोशिश तो करता रहा हूँ, परन्तु तुमने जो पत्र मुझे भेजा है उससे मैं अधिक विस्तारके साथ और सार्वजनिक रूपसे स्पष्टीकरण कर सकूँगा। फिलहाल तुम मुझसे हर हफ्ते गुजरातीके ३२ सफोंकी आशा रख सकते हो। एन॰ सेनको बिल क्यों भेजा गया? क्या मदनजीतकी सूचना पर? यदि ऐसी बात है तो तुम उन्हें इस आशय का पत्र लिखो कि मदनजीतके लिखनेपर आपको हिसाब भेजा गया था। नहीं तो, उन्हें लिख भेजो कि बिल भुलसे चला गया था, और व्यवस्थापक उसके लिए क्षमा-प्रार्थी हैं। मैं तुम्हारे देखनेके लिए और अगर किचिन, वेस्ट और बीनने श्रीमती बेसेंटका पत्र देखा हो तो उनके देखने के लिए भी, श्रीमती बेसेंटके नाम प्रेषित अपने पत्रकी[३] नकल भेज रहा हूँ। उन्होंने श्रीमती बेसेंटका पत्र न देखा हो तो भी तुम उन्हें वह बात बताकर यह नकल दिखा दो। प्रत्यक्ष है कि बीन तुम्हारे लिए पोलकका रिक्त स्थान पूरा कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यह अच्छा ही हुआ कि वे फीनिक्स चले गये—कमसे-कम तुमसे और मगनलालसे जान-पहचान हो जाने के लिहाज से ही सही।

तुम्हारा शुभचिन्तक,
मो॰ क॰ गांधी

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ४२३९) से।
  1. "साम" फीनिक्स वस्तीके इंजीनियर और शिकारी-गोविन्द स्वामी।
  2. देखिए "श्री गांधीका स्पष्टीकरण", १३-५-१९०५।
  3. देखिए "पत्र : एनी बेसेंटको," मई १३, १९०५।