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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/५००

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बड़ी रकम लम्बे अर्से रखना मनमें अच्छा नहीं लगता और जब मेरे पास अतिरिक्त रुपया हो तब तो ऐसा होना ही नहीं चाहिए। यह मेरी मान्यता है।

बच्चों की पढ़ाईकी चिन्ता रखें। मैंने आपकी तबीयतके बारेमें जो कुछ कहा है उसे न भूलें।

माजीको सलाम

मो॰ क॰ गांधीके सलाम

गांधीजी के स्वाक्षरों में गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ३६।

३७१. पत्र : दादाभाई नौरोजीको[]

[जोहानिसबर्ग
मई १५, १९०५]

[महोदय,]

नेटालमें अभी हाल में भारतीय-विरोधी आन्दोलन बहुत सक्रिय हो उठा है। हमारा ध्यान विभिन्न विधेयकोंकी ओर गया है जो गवर्नमेंट गज़टमें छपे हैं और अब नेटाल संसदके सामने हैं।

बन्दूक आदि शस्त्र-विधेयक भारतीयोंको किसी औचित्यके बिना ही वतनियोंके साथ सम्बद्ध कर देता है और जहाँतक उस विधेयकका सम्बन्ध है, उन्हें वतनी मामलोंके मुहकमेके अन्तर्गत रख देता है। इसका नैतिक प्रभाव क्या हो सकता है, यह कहनेकी आवश्यकता नहीं है।

एक दूसरा विधेयक प्रकाशित हुआ है। उसके अनुसार नेटालके देहाती क्षेत्रोंमें भारतीयोंका भूमि-अधिकार अधिकार ही नहीं रह जाता। यदि किसी व्यक्ति या कम्पनीके अधिकारमें २४९ एकड़ से अधिक देहाती जमीन हो और वह बेकार पड़ी हो तो उसपर इस विधेयक में प्रतिवर्ष प्रति एकड़ आधा पेंस कर लगानेका विधान है। इस विधेयकके अन्तर्गत यदि ऐसी भूमि भारतीयोंके अधिकारमें हो, परन्तु वे उसके मालिक न हों तो उन्हें कर देना होगा। यह अपमानजनक और अन्यायपूर्ण है। भारतीयोंने ही समुद्रतटकी भूमिमें कृषिको सम्भव बनाया है।

[अंग्रेजीसे]
इंडिया आफिस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, १६५०।
  1. मूल उपलब्ध नहीं है। यह केवल एक अंश है जिसे दादाभाई नौरोजीने भारत-मन्त्रीके नाम अपने जून ६, १९०५ के पत्र में उद्धृत किया था।