३७२. पत्र : हाजी दादा हाजी हबीबको
[जोहानिसबर्ग]
मई १५, १९०५
बॉक्स ८८
डर्बन
श्री सेठ हाजी दादा हाजी हबीब,
आपका तार मिला। मैंने जवाब दिया है। लॉर्ड सेल्बोर्न[१] इसी महीने आनेवाले हैं। इसलिए जबतक वे आ नहीं जाते मेरा निकलना बहुत मुश्किल है। उन्हें मानपत्र देनेकी बात चल रही है और अगर वह दिया गया तो मुझे अवश्य रुकना होगा। वे महाशय मानपत्र स्वीकार करेंगे या नहीं, यह इस अठवाड़े में मालूम हो जायेगा। बीचमें मैंने अब्दुल्ला सेठको लिखा है कि खर्चमें न पड़ें।
अगर मुझे आना ही पड़े तो मैंने कमसे कम ४० पौंड[२] मँगाये हैं। इस समय मेरी स्थिति ऐसी नहीं है कि मैं अपने खर्चसे आ सकूँ। इसके लिए माफी चाहता हूँ।
मो॰ क॰ गांधीके सलाम
- गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ४०।
३७३. पत्र : महान्यायवादीको
[जोहानिसबर्ग]
मई १७, १९०५
महान्यायवादी
पीटरमैरित्सबर्ग
महोदय,
मैं प्रमुख प्रवासी प्रतिबन्धक अधिकारी और अपने बीच एक ब्रिटिश भारतीयकी जमानतकी जब्तीके सम्बन्ध में किये गये पत्रव्यवहारकी[३] प्रतिलिपि सेवामें भेजने की धृष्टता कर रहा हूँ।
मैं केवल इस तथ्यपर जोर देना चाहता हूँ कि पासके मालिकने कतई धोखाधड़ी नहीं की। उसके खुदके कहनेके मुताबिक वह इतना बीमार था कि उपनिवेश से बाहर जाने के लायक नहीं था। किसी भी हालत में पासका दुरुपयोग करनेका उसका कोई इरादा नहीं था और वह एक गरीब आदमी है जिसे १० पौंड एक दोस्तने उधार दिये थे।