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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/५०२

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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


इस परिस्थितिमें और यह देखते हुए कि अदालती कार्रवाईको छोड़कर जन्तीका कोई औचित्य नहीं है, मुझे भरोसा है कि आप प्रमुख प्रवासी- प्रतिबन्धक अधिकारीको जमानतकी रकम लौटानेका अधिकार देनेकी कृपा करेंगे। इसके कानूनी पहलूपर जोर देनेकी मेरी कोई इच्छा नहीं है, किन्तु प्रार्थीके प्रति न्याय-दृष्टिसे आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ।

आपका आज्ञाकारी सेवक

[अंग्रेजीसे]
पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ६५।

३७४. पत्र: पारसी रुस्तमजीको

[जोहानिसबर्ग]
मई १७, १९०५

[सेवामें]
श्री रुस्तमजी जीवनजी घोरखोदू
श्री सेठ पारसी रुस्तमजी,

आपका पत्र मिला। पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई। आप अपनी माताजीसे मिले। मुझे निश्चय है कि इससे उन्हें बहुत हर्ष हुआ होगा। आपकी यह इच्छा पूरी हुई, यह बड़े संतोष की बात है।

आशा है, अब आप बच्चोंके शिक्षण और चालचलनपर खूब ध्यान देंगे। आपने जहाजमें खुराक सादी रखी, यह बहुत ठीक किया। इससे भी बहुत प्रसन्नता होती है कि आप बम्बई में अपना घूमना, खाना और नहाना नियमानुसार चलाते रहनेका आश्वासन देते हैं। मैंने आपकी कुछ सेवा की है, मनमें ऐसा खयाल करनेकी कोई जरूरत नहीं है। मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि आपकी तन्दुरुस्ती हमेशा सुधरती चली जाये और आप दीर्घायु होकर अच्छे काम करें।

आप मेरे बच्चोंसे जब मिलें तो उन्हें यहाँ आनेके लिए समझायें।

यहाँके कामकी जरा भी फिक्र न करें। मुझे समय-समयपर आपके पत्र मिलते हैं। मुझे लगता है कि दोनों व्यक्ति सन्तोषपूर्वक काम करते हैं।

मैं पिछले मुकदमोंके बिलोंके बारेमें पूछताछ कर रहा हूँ।

माजीको सलाम। भाई जालको[] मुझे चिट्ठी लिखनेके लिए कहें। उसके नीचे सोराबसे[] भी लिखवायें।

मो॰ क॰ गांधीके सलाम

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका, (१९०५), सं॰ ७०।
  1. पारसी रुस्तमजीके पुत्र।
  2. पारसी रुस्तमजीके पुत्र।,