३७५. पत्र : कैखुसरू व अब्दुल हकको
[जोहानिसबर्ग]
मई १७, १९०५
भाई कैखुसरू और अब्दुल हक,
तुम्हारा पत्र मिला। भूचाल पीड़ित सहायक कोषमें ज्यादासे ज्यादा पाँच गिन्नी चन्दा देना बशर्तें कि उमर सेठ इतना दें। उनकी राय ले लेना। उनसे कहना कि दोनों इतना ही चन्दा दें, यह मेरी सलाह है। अगर उमर सेठ इससे कम दें तो तुम भी उनके बराबर ही देना, उनसे अधिक नहीं। दूसरोंसे भी चन्दा लेनेकी तजवीज करना।
रुस्तमजी सेठका पत्र आया है। उसमें श्री लॉटनके पिछले मुकदमोंके बिलोंके बारेमें पूछा है। उनमें कुछ कमी संभव हो तो करा लेना और उनका रुपया चुकाया न हो तो चुका कर उसकी खबर उनको दे देना।
रुस्तमजी सेठ चाहते हैं कि तुम दोनों भाइयोंमें से एक अधिकतर हमेशा दूकानमें रहे, ऐसा प्रबंध करना और इसके बारेमें उन्हें आश्वासनप्रद पत्र लिख देना। मैंने उनको लिखा है कि तुम्हारे हाथोंमें काम हमेशा ठीक ही रहेगा और उन्हें तनिक भी चिन्ता नहीं करनी है। तसवीर वहाँ खिचवाई, यह ठीक किया।
मो॰ क॰ गांधीके सलाम
- गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ७२।
३७६. पत्र : ईसा हाजी सुमारको
[जोहानिसबर्ग]
मई १८, १९०५
श्री ईसा हाजी सुमार
रानावाव
पोरबन्दर
भारत
श्री सेठ ईसा हाजी सुमार,
आपका पत्र मिला। आपका मत मेरे मतसे मिलता है, यह जानकर मुझे खुशी होती है। यदि आप श्री जोशीको ले जायें, तो कागज वगैराका खर्च इतना कम आयेगा कि उसकी माँग करना व्यर्थ है। जब आप विलायत जायेंगे तब उसका लाभ होगा, ऐसा मैं समझता हूँ।
दूसरे भाई आपकी मदद के लिए नहीं बढ़ते, इससे जरा भी हिम्मत हारनेकी जरूरत नहीं है। जो अपना फर्ज समझते हैं उन्हें ही वह फर्ज अदा करना है, दूसरे शामिल हों या न हों। जायदाद के बारेमें जो मुकदमा चल रहा है उसका हाल इंडियन ओपिनियनमें देखा होगा।
मो॰ क॰ गांधीके सलाम
- गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ७१।