३७९. दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके सम्बन्धमें लॉर्ड कर्जनका भाषण
वाइसरायकी परिषद में, बजटकी बहसके समय दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके सम्बन्धमें लॉर्ड कर्ज़नका पूरा भाषण आजकी भारतीय डाकसे प्राप्त हुआ है।
परमश्रेष्ठने दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके दर्जेंकी लम्बी चर्चा की, इसलिए दक्षिण आफ्रिकी प्रवासी ब्रिटिश भारतीयोंको उनकी इस जोरदार वकालतके लिए अत्यन्त कृतज्ञ होना चाहिए। परमश्रेष्ठके भाषणका खासा हिस्सा नेटालकी स्थितिके सम्बन्धमें था और हमें अब पहली बार मालूम हुआ है कि कुछ समय पूर्व नेटाल सरकारकी ओरसे जो प्रतिनिधि भारत गये थे, उनका काम किस किस्मका था। उनका उद्देश्य यह था कि नौकरीकी समाप्तिपर गिरमिटिया भारतीयोंकी वापसी नितान्त अनिवार्य करार देकर उनपर और भी प्रतिबंध लागू किये जायें। हमें यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि जबतक नेटाल सरकार उपनिवेशमें आबाद गैर-गिरमिटिया भारतीयोंको कुछ रियायतें न दे दे तबतक लॉर्ड कर्ज़नने किसी भी ऐसे सुझावको मानने से इनकार कर दिया। लॉर्ड महोदयने तीन पौंडी करकी अन्ततः समाप्ति, विक्रेता-परवाना अधिनियम में संशोधन तथा जिन कानूनोंके अन्तर्गत भारतीय असभ्य जातियोंमें वर्गीकृत किये जाते हैं उनमें और अन्य छोटी-छोटी बातोंमें परिवर्तनकी माँग की।
यह सब अत्यन्त संतोषजनक है और इससे जाहिर होता है कि भारतीयोंने वाइसरायसे जो अपील की थी उसपर पूरा विचार किया गया है। परमश्रेष्ठने यह भी कहा कि वे एक रियायत स्वीकृत भी करा सके हैं, अर्थात् नेटाल-सरकारने उपनिवेशमें तीन वर्षका निवास भारतीयोंको प्रवासी-प्रतिबन्धक कानूनके अन्तर्गत लगे निषेधसे मुक्त करनेकी शर्त के रूपमें मान लिया है। इसका यह अर्थ है कि लॉर्ड महोदयको किसी तरह यह विश्वास हो गया है कि यह नेटाल-सरकार द्वारा दी गई रियायत है। यदि ऐसी बात है तो हमें दुःख है, क्योंकि यह वक्तव्य भ्रामक होगा। वस्तुतः नेटाल सरकार "पूर्व निवास" शब्दोंकी व्याख्याके सम्बन्धमें कुछ नियम बनानेके लिए बाध्य थी। कानूनमें, जैसा वह पहले था, कहा गया था कि वे भारतीय, जो उपनिवेशके "पूर्व निवासी" हैं, शैक्षणिक प्रतिबन्धोंसे मुक्त रहेंगे। व्यवहारतः दो वर्षका निवास श्री स्मिथ[१] द्वारा प्रायः "पूर्व निवास" के प्रमाणके रूपमें स्वीकार कर लिया जाता था; और श्री स्मिथकी सिफारिशपर ही सरकारने यह अवधि बढ़ाकर तीन वर्ष कर दी है और उसे कानून में शामिल कर लिया है। हम परमश्रेष्ठको यह भी सूचित कर दें कि तीन वर्षका निवास "पूर्व निवास" का प्रमाण मान ही लिया जाये, यह जरूरी नहीं है। हम यह कहनेकी धृष्टता करते हैं कि यदि कानूनमें यह संशोधन न किया जाता तो किसी भारतीयको, जो उपनिवेशमें छः महीने भी रह चुका हो और जो यह सिद्ध कर सकता हो कि वह अब नेटालमें रहने लग गया है। और वहाँका निवासी होना चाहता है, छूट देनेसे इनकार करना संभव नहीं था। इसलिए हमें बहुत ही नम्रतापूर्वक यह कहना पड़ता है कि लॉर्ड महोदय जिसे रियायत समझते हैं वह कतई रियायत नहीं है। किन्तु प्रश्न यह है कि क्या लॉर्ड महोदय वहीं रुक सकते हैं जहाँ उन्होंने बात छोड़ी है। चालू वर्षमें नेटाल संसद सक्रिय रूपसे भारतीय-विरोधी नीतिका अनुसरण करती रही है। हम उन विधेयकोंकी ओर ध्यान आकर्षित कर ही चुके हैं जिनमें भारतीय-विरोधी धाराएँ
- ↑ प्रवासी अधिकारी।