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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं। विक्रेता परवाना अधिनियम सतत चिन्ता और परेशानीका सबब है। तब क्या यह उचित है कि नेटाल भारतको अपनी उन्नतिके साधनके रूपमें बरतता चला जाये और स्वतन्त्र ब्रिटिश भारतीयोंकी तरफसे भारत सरकारके सुझावोंको अस्वीकृत कर दे? हमें कमसे कम यह तो कहना ही चाहिए कि यह एकतरफा सौदा है जिसमें बदले में कुछ दिए बिना नेटाल सब लेता ही है।

परमश्रेष्ठने ट्रान्सवालकी स्थितिकी भी चर्चा की। उनका वक्तव्य श्री लिटिलटनके खरीतेका संक्षेप है; किन्तु उससे यह प्रकट हो जाता है कि वह अपने आश्रितोंके हितोंके बारेमें पूरी तरह सावधान हैं। हम आशा करते हैं कि उनकी सतर्क अभिभावकतामें भारतीय निकट भविष्यमें उन कष्टप्रद प्रतिबन्धोंसे छुटकारा पा जायेंगे जिनके कारण वे उस शाही उपनिवेशमें उत्पीड़ित हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-५-१९०५

३८०. नेटालमें भारतीय-विरोधी कानून

नेटाल गवर्नमेंट गज़टके एक हालके अंकमें तीन विधेयक प्रकाशित हुए हैं। उनसे पता चलता है कि इस उपनिवेशकी आर्थिक स्थिति कितनी खराब है। उनमें से एक विधेयकका उद्देश्य १८ वर्ष या उससे अधिक उम्र के प्रत्येक वयस्क पुरुषपर एक पौंडका व्यक्तिकर लगाना है। उसके अनुसार इस करकी अदायगीसे वे लोग मुक्त रहेंगे जो या तो गरीब हैं या अशक्त हैं या गिरमिटिया मजदूर हैं। परन्तु गिरमिटिया मजदूर उसी वक्ततक मुक्त रहेंगे जबतक वे गिरमिटके अन्तर्गत हैं। दूसरे विधेयकमें मृत व्यक्तियोंकी जायदादपर उत्तराधिकार कर लगानेकी तजवीज है। इस करकी न्यूनतम दर मृत व्यक्तिके पूर्वजों अथवा वंशजोंके लिए एक फीसदी है। अगर ये दोनों विधेयक नेटाल संसद द्वारा स्वीकृत कर लिये गये तो इनसे सरकारको अच्छी-खासी आमदनी होनेकी सम्भावना है।

लेकिन वह तीसरा विधेयक है जिससे हमारा अधिक सम्बन्ध है और भारतीय समाजको प्रभावित करनेवाला एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठता है। इस विधेयकको शीर्षक दिया गया है—"अनधिकृत देहाती जमीन कर विधेयक"। इसका उद्देश्य है २५० एकड़ या उससे अधिक अनधिकृत देहाती भूमिपर आधा पेंस फी एकड़की दरसे कर लगाना। विधेयककी पाँचवीं धारामें कहा गया है कि,

जिस जमीनपर उसका मालिक या कोई यूरोपीय किसी सालमें पहली मार्चसे पहले बारह महीनों में से कमसे कम नौ महीनेतक लगातार न रहा हो वह जमीन अनधिकृत समझी जायेगी।

इस प्रकार, अगर यह विधेयक पास हो गया तो देहाती भूमिका कोई भी टुकड़ा, जिसपर उसके मालिकके अलावा उपनिवेशके किसी अन्य भारतीयका दखल है, आधा पेंस प्रति एकड़ कर लगानेके उद्देश्यसे अनधिकृत माना जायेगा। समुद्र-तटवर्ती जिलोंमें, जहाँ जमीनकी काश्त केवल भारतीय ही करते हैं, भारतीय जमींदार इस विधेयकसे प्रभावित हो सकते हैं।

श्री लिटिलटनको, साम्राज्यके हितकी दृष्टिसे, भारतीयोंको अकारण ही लगातार अपमानित और परेशान करनेकी इस नीतिको रोकना चाहिए। यह सच है कि नेटाल पूर्ण रूपसे स्वशासित राज्य है, और इसलिए वह अपने कानून स्वयं बनानेके लिए स्वतंत्र है। लेकिन जब स्वतन्त्रता