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केपमें प्रवासी कानून

स्वच्छन्दता बन जाती है, तब सवाल यह पैदा होता है कि क्या इंग्लैंडकी सरकारको, जो साम्राज्यकी सम्मानित परम्पराओंकी संरक्षिका है, ऐसे कानूनका निर्माण नहीं रोकना चाहिए, जिसके द्वारा विधान सभामें प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्वसे वंचित ब्रिटिश प्रजाका अपमान होता है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-५-१९०५

३८१. केपमें प्रवासी कानून

केपमें जो प्रवासी कानून बना है उसके अमलके बारेमें वहाँके प्रवासी अधिकारी डॉक्टर ग्रेगरीकी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी गई है। इससे पता चलता है कि पिछले महीने में जिन लोगोंने उपनिवेशमें प्रवेशका प्रयत्न किया उनमें से २९८ को लौटा दिया गया है। उनमें से ५६ लोगोंको अंग्रेजी पढ़ा न होनेसे, १५६ को कंगाल होनेसे और ७४ को अनपढ़ और गरीब होनेसे अनुमति नहीं दी गई। उनमें से १२ वेश्यायें थीं अतः उन्हें उतरनेकी मनाही कर दी गई। डॉक्टर ग्रेगरी मानते हैं कि समय खराब होनेके कारण ऐसे बहुत-से लोग नहीं आये हैं जो अन्यथा आना चाहते। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि कानूनका वास्तविक प्रभाव क्या हुआ है। डॉक्टर ग्रेगरी विश्वास करते हैं कि बहुतसे भारतीयोंको उतरने नहीं दिया गया, अतः उन्हें कष्ट उठाने पड़े हैं। और यदि यह भी मान लिया जाये कि यह कानून भारतीयोंका प्रवेश रोकने के लिए अच्छा है तो भी यह प्रश्न हो सकता है कि जब यिडिशभाषी यहूदी, जो वस्तुतः भिखमंगे हैं, अपने दोस्तोंसे रुपया उधार लेकर आ सकते हैं तब क्या ब्रिटिश भारतीय लोगोंको प्रवेश करनेसे रोकना न्यायपूर्ण है। इस रिपोर्टसे मालूम होता है कि डॉक्टर ग्रेगरी स्वयं इस कानूनको अन्यायपूर्ण मानते हैं। केप सरकारने केपके भारतीयोंको वचन दिया है कि उक्त कानूनमें भाषा-ज्ञान सम्बन्धी शर्तमें परिवर्तन कर दिया जायेगा ताकि एक भारतीय भाषाका ज्ञान स्वीकृत हो सके। इस वचनकी पूर्ति कराना केपके प्रमुख भारतीयोंका कर्त्तव्य है। यदि वे इस सम्बन्धमें जोर-शोरसे काम करेंगे तो हमें पक्का भरोसा है कि सरकार उक्त विधेयकमें आवश्यक परिवर्तन कर देगी। हम आशा करते हैं कि केपके भारतीय इस मामलेको पूरी शक्तिसे हाथमें लेंगे और सफल करेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-५-१९०५