३८४. पत्र : हाजी मुहम्मद हाजी दादाको
[जोहानिसबर्ग]
मई २०, १९०५
बॉक्स ७३,
डर्बन
श्री सेठ हाजी मुहम्मद हाजी दादा,
मैंने कसस्सुल अंबिया[१] पुस्तक पढ़ी नहीं है। अगर आप मुझे उसकी प्रति भेज दें तो मैं कह सकूँगा कि इंडियन ओपिनियनमें उसके उद्धरण ले सकेंगे या नहीं। अंग्रेजीके पाठकोंके कामकी तवारीख हो तो अंग्रेजीमें भी छापी जा सकती है। मैंने इस पुस्तकका नाम कई बार सुना है। क्या यह सम्भव नहीं है कि उसमें दी हुई बातें बहुत से पाठक जानते हों? यदि ऐसा हो तो छापें कि नहीं, यह सवाल आ जायेगा।
गुणवंतराय से रुपया वसूल कर रहा हूँ। २५ पौंड आ गये हैं और सेठ हाजी हबीबके खाते में जमा कर दिये हैं। मेरा खयाल है, बाकी रकमका ५ पौंड हर महीना आयेगा।
मो॰ क॰ गांधीके सलाम
- गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ १०२।
३८५. पत्र : अब्दुल हक व कैखुसरूको
[जोहानिसबर्ग]
मई २०, १९०५
८४, फील्ड स्ट्रीट
डर्बन
श्री ५ भाई अब्दुल हक व कैखुसरू,
आपका पत्र मिला। सेठ आजम गुलाम हुसैनकी तरफसे मुख्त्यारीके इख्तियार मिल गये हैं।
हुसेन ईसप दुकानका नौकर जान पड़ता है। वह १५ पौंड तनख्वाह पेटे पेशगी माँगता है। वह कहता है कि आपने उसको मेरी स्वीकृति लानेके लिए कहा है। अगर वह आदमी काम बहुत अच्छा करता हो, विश्वास करने लायक हो और उसे रुपयेकी सचमुच जरूरत हो तो मुझे लगता है कि उसे पेशगी रुपये देनेमें हर्ज नहीं है। पर यह मैं आपके निर्णयपर छोड़ता हूँ।[२]
मो॰ क॰ गांधीके सलाम
- गांधीजी स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ १०३।