३८६. पत्र : उमर हाजी आमद और आदमजी मियाँखाँको
[जोहानिसबर्ग]
मई २०, १९०५
मैंने पहले श्री नाजरके मार्फत जो अर्जी[१] भेजी थी वह विधानसभा में दे दी होगी। न दी हो तो शायद अब समय थोड़ा रह गया है।
मैं आज दूसरी अर्जी भेजता हूँ।[२] वह एक दूसरे कानूनके बारेमें है। मुझे आशा है, इस मामलेमें ढील नहीं होगी।
यह डर्बनका एक गैरसरकारी विधेयक है, जिसके बारेमें वकीलकी मार्फत सुनवाई हो सकती है। मैंने श्री नाजरको वैसा करनेकी सूचना दे दी है।
इस वक्त आप दोनोंको ताकत दिखानी है और हिम्मतसे काम करना है। कम हस्ताक्षर हों तो भी हर्ज नहीं है। अगर अध्यक्ष और मन्त्रीके हस्ताक्षर हों तो भी काम चल सकता है।
मो॰ क॰ गांधीके सलाम
- संलग्न—१
- गांधीजी स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ १०४।
३८७. पत्र : हाजी दादा हाजी हबीबको
[जोहानिसबर्ग]
मई २३, १९०५
बॉक्स ८८
डर्बन
श्री सेठ हाजी दादा हाजी हबीब,
आपका पत्र और रुक्का मिला। मेरे लिए रुक्केका कोई उपयोग नहीं है, इसलिए वापस भेजता हूँ। मेरी स्थिति ऐसी है कि मैं अपनी गाँठका पैसा कुछ समयके लिए भी खर्च करनेमें हिचकिचाता हूँ। फिर भी आपका आग्रह है, इसलिए अगर अब्दुल्ला सेठका सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला तो यथासम्भव शीघ्र यहाँसे रवाना हो जाऊँगा।
मो॰ क॰ गांधीके सलाम
- गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ११६।