पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१
असली रूपमें

स्थापनाका स्वागत करते है और कामना करते हैं कि वह अपने जीवनको सार्थक करे और चिरायु हो!

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-१०-१९०३

१७. रपट पड़ेकी हर गंगा

जोहानिसबर्गके पत्रोंसे ज्ञात होता है कि आखिर यही निश्चय होने जा रहा है कि खानोंके लिए चीनी मजदूर न लाये जायें। श्री स्किनरके अंक[१] बताते हैं कि गहरी खानोंमें चीनी मजदूर लाभदायक साबित नहीं होंगे। उनके प्रतिवेदनसे यह भी ज्ञात होता है कि वे आसानीसे आयेंगे भी नहीं। प्रस्तावित शर्तोपर आवश्यक संख्याको राजी करनेके लिए बहुत अधिक खुशामद करनी पड़ेगी। यदि ये समाचार सही हैं तो इस मुक्तिपर दक्षिण आफ्रिकाके लोग अवश्य अपने आपको बधाई दे सकते हैं। हमें आश्चर्य नहीं होगा, अगर यहाँके करोड़पति एकाएक घोषणा कर दें कि इस मन्दीका मजदूरोंके प्रश्नसे कोई सम्बन्ध नहीं है। उसके कारण दूसरे ही हैं। और यह कि चीनसे मजदूर न आयें तो भी खानें बराबर चलती रहेंगी। परन्तु यह तो रपट पड़ेकी हर गंगा हुई। वे यह कह सकते थे, "चाहे हमें खानें बन्द कर देनी पड़ें तो भी हम शर्तबन्द एशियाई मजदूरोंको लेकर श्रमिक-वर्गके साथ अन्याय न करेंगे और वह काम न करेंगे जो तत्वत: दासोंका क्रय-विक्रय है।" अगर वे ऐसा करते तो उनकी स्थिति ज्यादा गौरवास्पद हुई होती और वे श्रमिक-वर्गके प्रिय बन गये होते।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-१०-१९०३

१८. असली रूपमें

डंडी नगर-परिषदकी हाल ही में हुई एक बैठकका यह विवरण नेटाल मर्क्युरीसे लिया गया है:

परवाना-अधिकारीने एक भारतीयको, जिसने अपने व्यापारके लिए एक इमारत खड़ी कर ली थी, परवाना दे दिया। परवाना-अधिकारीके इस कार्यका परिषद सदस्य श्री विल्सनने विरोध किया। उन्होंने इस कार्यको अत्यन्त अनुचित बताया; क्योंकि यूरोपीयों द्वारा बनाई शानदार दूकानोंके किरायेदार भारतीयोंको ऐसे परवाने देनेसे इनकार कर दिया गया था। उन दूकानोंकी तुलनामें इस भारतीयकी इमारत झोंपड़ेके समान कही जायेगी।

परिषद-सदस्य जोन्सने इस विषयपर बड़ा जोरदार भाषण दिया और उन्होंने इस कार्यको लज्जाजनक बताया। क्योंकि, परिषदने साफ इच्छा व्यक्त की थी कि अब भारतीयोंको परवाने न दिये जायें।

  1. देखिए "चीनी मजदूरों के बारेमें श्री स्किनरकी रिपोर्ट " १५-१०-१९०३।