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३९५. साम्राज्य-दिवस

साम्राज्य-दिवस—स्वर्गीया सम्राज्ञीका जन्म-दिवस—ब्रिटेनके बाहर साम्राज्यके सब भागों में सब वर्गोंकी सम्मतिसे अपनी अत्यन्त प्रिय महारानीके शासनकी स्मृति मनानेके लिए निश्चित किया गया दिवस है। यह दिन "विक्टोरिया"—दिवसकी अपेक्षा "साम्राज्य"—दिवसके नामसे ज्यादा विख्यात हो रहा है। इससे तो उनके प्रति अधिक गम्भीर आदर ही व्यक्त होता है। क्योंकि यह इस बातकी स्वीकृति है कि जिन विशाल उपनिवेशोंकी वे महारानी थीं उन्हें पास-पास लानेमें उनसे अधिक काम किसी अन्य व्यक्तिने नहीं किया। अपने हृदयकी विशालता और व्यापक सहानुभूतिसे; अपनी योग्यता और राजसी गुणोंसे; तथा इन सबसे बढ़कर नारीके रूपमें अपने व्यक्तिगत भलेपनके कारण उन्होंने ब्रिटिश ध्वजाके नीचे बसी सब जातियोंके हृदयों में सदाके लिए अपना स्थान बना लिया है। उनके छोटे शासनाधिकारियोंसे गलतियाँ हुई होंगी; उनके नाम पर गैर-इन्साफियाँ भी की गई होंगी; किन्तु लोग सदा जानते थे कि वे गलतियाँ और गैर-इन्साफियाँ नेक विक्टोरियाकी नहीं हैं। वे जितनी योग्य रानी थीं, उतनी ही योग्य पत्नी और माता भी सिद्ध हुई। वे जानती थीं, कि केवल गार्हस्थिक पवित्रता परिवारको सुखी और समृद्ध बनाती है। बाइबिलके इस वचनमें उनकी श्रद्धा अटूट थी : पवित्रता जातियोंको उदात्त बनाती है; किन्तु पाप सभी लोगोंको अपयश देता है। उन्होंने सबसे पहले यह समझा कि ब्रिटिश साम्राज्यकी नींव पवित्रता—वैयक्तिक पवित्रता और जातीय पवित्रता—की चट्टान पर डाली जानी चाहिए। तभी उसकी उन्नति स्थायी होगी। अतीत में दूसरे राष्ट्र और साम्राज्य भी हुए हैं; किन्तु वे सब इस "पापकी चट्टान" पर पतित होकर नष्ट हो गए। जब उन्होंने वे सरल शब्द कहे थे कि मैं नेक बनूँगी, तभी सारे संसारमें उन्होंने अपनी प्रजाका स्नेह अर्जित कर लिया था। यहाँ यह देखा जा सकता है कि विक्टोरियाको अपनी यह महानता विधिके विधान के अन्तर्गत अपनी बुद्धिमती मातासे मिली थी। असंख्य महान पुरुष और स्त्री इस सत्यको कर्त्तव्यनिष्ठाके साथ पहले भी स्वीकार कर चुके हैं और उनके बाद भी। यह चिर सत्य है कि अच्छी माता अपने बच्चेको बुद्धिमान बनाती है। इसका दूसरा उदाहरण ब्रिटिश सिंहासन पर आसीन वर्त्तमान महानुभाव हैं। हम देखते हैं कि उनके प्रति सब संतोष अनुभव करते हैं। वे इस समयतक भी अपनी कुशलता और बुद्धिमत्तासे साम्राज्य और संसारके लिए कितना काम कर चुके हैं। बादशाह एडवर्ड में वह विशिष्ट प्रतिभा उनके सब समकालीन बादशाहोंसे अधिक दिखाई देती है जो सच्चे राजाका प्रधान गुण है। और उसके मूलमें अधिकतर प्रभाव उनकी गौरवशालिनी माता का है।

इस तरह जब हम साम्राज्यके विषयमें सोचते हैं तब विक्टोरियाका नाम हर तरह आदरणीय ठहरता है और यह उचित ही है कि इसके लिए निश्चित किया गया दिवस उस क्षणकी वर्षगाँठ हो जिसमें वे संसारमें आई थीं।

विशेषतः भारतीयोंके लिए, विक्टोरिया-दिवस पुण्य दिवस होना चाहिए। भारतकी स्वतंत्रताके लिए जितना स्वर्गीया महारानीने किया उतना दूसरे किसी व्यक्तिने नहीं किया। यह बात करोड़ों भारतीय स्वीकार करते थे। यह उनके देहान्तके बाद सारे देशमें व्यक्त किए गये साधारण शोक-प्रदर्शनोंसे स्पष्ट हो गया था। वाइसरायने उनके बारेमें बोलते हुए कहा था :