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३९६. परीक्षात्मक मुकदमेके सदृश

सर्वोच्च न्यायालयने एक मुकदमे में एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया है। उस मुकदमे में कोई सईद इस्माइल तथा एक अन्य व्यक्ति वादी और ल्यूकस नामके किसी मृत व्यक्तिकी दिवालेकी जायदाद के न्यासीके रूपमें एल॰ के॰ जैकब्स प्रतिवादी थे। मुकदमा सबसे पहिले जोहानिसबर्ग के उच्च न्यायालय में दायर किया गया था। वहाँ वादियोंकी कुछ जमीन-जायदाद थी; किन्तु चूँकि वे उसकी मिल्कियतका अपने नाम पंजीयन करानेसे रोक दिये गये थे, इसलिए उन्होंने उसका पंजीयन अपने मित्र मृत ल्यूकसके नाम करा दिया। यह बात १८९६ की है। अभी कुछ समय पहलेतक वे उसपर काबिज थे और यह बात अधिकारियोंकी जानकारीमें थी। वे सारा महसूल और दूसरे कर भी दे चुके थे। उन्होंने जोहानिसबर्गकी एक प्रमुख वकील पेढ़ीकी सलाहसे यह रास्ता इख्तियार किया था; और अपने बचाव के विचारसे मृत ल्यूकससे जायदाद के बारेमें कार्रवाईकी मुख्त्यारीका पक्का इख्तियार और पट्टा ले लिया था। इसके साथ एक धारा जुड़ी थी जिसमें पट्टा हमेशा अपने आप नया होते रहनेकी व्यवस्था थी। लड़ाईके पहले ल्यूकस दिवालिया हो गया और कुछ समयके बाद उसकी मृत्यु हो गई। मूल न्यासीने उक्त जायदादको कभी सूचीमें सम्मिलित नहीं किया। जोहानिसबर्ग नगरपालिकाने सन् १९०२ में अधिग्रहण अध्यादेश के अन्तर्गत दूसरी जायदादोंके साथ इसे भी अपने अधिकारमें ले लिया और उसका मुआवजा २,००० पौंड तय किया। यह निर्णय स्वभावतः पंजीकृत मालिक अर्थात् ल्यूकसके पक्षमें दिया गया था; किन्तु चूँकि वादियोंने मुकदमा दायर कर दिया था और उस पैसेके लिए दावा किया था जो उनके कथनानुसार ल्यूकसके पास उनकी ओरसे गुप्त रूपसे धरोहर रखी हुई जायदादसे मिला था, इसलिए वह पैसा सर्वोच्च न्यायालय के अध्यक्षके पास जमा कर दिया गया और दोनों पक्ष अपने अधिकारोंके सम्बन्ध में अदालती फैसला लेनेके लिए स्वतन्त्र छोड़ दिये गये। इसलिए वादियोंने प्रतिवादीके विरुद्ध मुकदमा दायर कर दिया कि वे अपने अधिकारोंको सिद्ध करें। और उन्होंने यह माँग भी की कि सर्वोच्च न्यायालयके अध्यक्ष के नाम उनको रुपया देनेका हुवम जारी किया जाये। सफाई में पहले यह कहा गया कि चूँकि वादी ब्रिटिश भारतीय हैं, और १८८५ के कानून ३ के अनुसार जमीनी जायदादके मालिक नहीं हो सकते, इसलिए ल्यूकसने उनकी ओरसे जमीनी जायदाद रखनेका जो इकरारनामा किया वह गैर-कानूनी और बेअसर है और इसलिए वह कानूनन अमलमें नहीं लाया जा सकता। बचाव पक्षकी दूसरी दलील यह थी कि अगर ल्यूकसके लिए वादियोंके साथ इकरारनामा करना उचित भी था तो भी वादियोंका अधिकार उसके विरुद्ध व्यक्तिगत ही है और इसलिए वे केवल दूसरे ऋणदाताओंके समान ही अपना दावा साबित कर सकते हैं; आम अधिकारके बलपर, दूसरे शब्दों में विशिष्ट ऋणदाता की हैसियतसे, इस रुपये के लिए अपना अधिकार सिद्ध नहीं कर सकते। सर विलियम स्मिथने वादियोंके पक्ष में खर्च समेत फैसला दिया, यद्यपि थोड़ा आगा-पीछा किये बिना नहीं। इसपर प्रतिवादीने अपील की और अपीलमें सर्वोच्च न्यायालयने बचाव पक्षकी दूसरी दलीलको मान्य करते हुए प्रतिवादीके पक्ष में फैसला किया। तथापि इस महत्त्वपूर्ण फैसलेका विशुद्ध परिणाम यह जान पड़ता है कि यूरोपीयोंका भारतीयोंकी ओरसे जमीनपर कब्जा रखना गैर-कानूनी नहीं है; किन्तु अगर, ऐसे यूरोपीयोंके दिवालिया हो जानेकी अवस्थामें, मिल्कियतनामेपर उनके नाम सम्पत्तिके लाभके अधिकारीके रूप में पंजीकृत नहीं हैं तो उन्हें जोखिम उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसलिए

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