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३९८. सर मंचरजी और श्री लिटिलटन

सर मंचरजीने श्री लिटिलटनसे पूछा कि ट्रान्सवाल राज्यके संविधानमें भारतीयोंको मताधिकारसे वंचित करनेका क्या कारण था? उन्होंने यह भी पूछा कि सरकार संविधानमें परिवर्तन करके भारतीयोंको अब मताधिकार देगी या नहीं। श्री लिटिलटनने उत्तर दिया कि लड़ाईकी समाप्तिपर जो सन्धि हुई उसका अर्थ बोअर लोग यह करते हैं कि जबतक ट्रान्सवालको पूर्ण स्वराज्य नहीं मिलता तबतक किसी भी काले आदमीको मताधिकार नहीं दिया जायेगा। इसके आधारपर श्री लिटिलटनने भारतीयोंको मताधिकारसे वंचित कर दिया है जिससे बोअर लोगोंको ब्रिटिश सरकारकी ईमानदारीके बारेमें सन्देह उत्पन्न न हो। सन्धिपत्र में जो शब्द प्रयोगमें लाया गया है वह "रंगदार लोग" नहीं है, अपितु "वतनी" है। अब "वतनी" शब्दका अर्थ किसी भी प्रकार "भारतीय" नहीं किया जा सकता। दक्षिण आफ्रिकामें यह शब्द सदैव इस देशके मूल वासियोंके लिए ही प्रयुक्त किया जाता है। "वतनी" शब्दमें भारतीयोंको और दूसरे काले लोगोंको गिननेका रिवाज अभी नया ही है। और वह भी तब जब कानूनमें विशेष रूपसे उसका ऐसा उल्लेख हो। अब भी आम तौरसे इसका इस प्रकारका अर्थ नहीं किया जाता। फिर भी श्री लिटिलटनने ऊपर जो स्पष्टीकरण किया है वह आश्चर्यजनक है। और यदि भारतीय "वतनी" शब्दमें इस तरह शामिल किये जाते रहे तो उनको बहुत हानि होनेकी सम्भावना है।

स्वराज्य मिलनेपर डच या ब्रिटिश कोई भी भारतीयोंको मताधिकार देंगे, यह सम्भावना तनिक भी नहीं है। सर जॉर्ज फेरारने, जो ट्रान्सवालके एक विख्यात सज्जन हैं, कहा है कि "वतनी" लोगोंको कभी मताधिकार नहीं दिया जायेगा। भारतीयोंके सम्बन्धमें इन महानुभावके विचार बहुत ही विरोधी हैं। इसलिए "वतनी" लोगोंको मताधिकार न मिले और भारतीयोंको मिले, यह विचार उनको सपने में भी नहीं आ सकता।

उपर्युक्त सवाल-जवाबका अर्थ यह निकलता है कि जब-जब "वतनी" शब्द के अन्तर्गत भारतीय गिने जायें तब-तब डटकर मोर्चा लिया जाये।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-५-१९०५