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लॉर्ड सेल्बोर्नको दिया हुआ मानपत्र


मैंने जो कुछ कहा है वह इतिहासपर आधारित है, इसमें कोई शक नहीं है और इसके लिए मैं आपसे एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका और हन्टरकी इंडियन एम्पायर आदि पुस्तकें देखनेकी सिफारिश करता हूँ।

हलके वर्ग के लोग मेरी समझमें नीच नहीं हैं। मैं उनको सँभालना खुदाई काम मानता हूँ। आपने मेरा वर्ण पूछा है। मेरा वर्ण वैश्य है।

अधिक क्या लिखूँ।[१]

मो॰ क॰ गांधीके सलाम

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ १६३।

४०१. लॉर्ड सेल्बोर्नको दिया हुआ मानपत्र

जोहानिसबर्ग
[मई २८, १९०५][२]

परमश्रेष्ठ हमपर कृपालु हों

हम, नीचे हस्ताक्षर करनेवाले, ट्रान्सवालमें बसे हुए ब्रिटिश भारतीयोंके प्रतिनिधि, परम श्रेष्ठका सम्मानपूर्ण स्वागत करनेकी इजाजत चाहते हैं, और प्रार्थना करते हैं कि आपके शासन कालमें विशेष रूपसे यह देश पुनः समृद्धिको प्राप्त हो और इस उपमहाद्वीपमें बसी हुई महामहिमकी प्रजाओंके विभिन्न अंगोंमें शान्ति और सौहार्दकी स्थापना हो। क्या हम परमश्रेष्ठसे यह अनुरोध कर सकते हैं कि परमश्रेष्ठ महामहिम सम्राट और सम्राज्ञीको उनके प्रति हमारी राजभक्तिका विश्वास दिला देनेकी कृपा करेंगे?

हम हैं,
परमश्रेष्ठके विनीत सेवक,
अब्दुल गनी,
ए॰ ए॰ पिल्ले,
मो॰ क॰ गांधी

[तथा अन्य १७ व्यक्ति]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-६-१९०५
  1. गांधीजी इस सम्बन्धमें अपनी स्थिति कुछ विस्तारसे पहले स्पष्ट कर चुके हैं, देखिए "श्री गांधीका स्पष्टीकरण," १३-५-१९०५।
  2. यह मानपत्र वस्तुतः बुधवार ७ जूनको भेंट किया गया था।