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४०२. पत्र : ईसा हाजी सुमारको

[जोहानिसबर्ग]
जून १, १९०५

सेवामें
श्री ईसा हाजी सुमार
रानावाव
पोरबन्दर
काठियावाड़, भारत

श्री सेठ ईसा हाजी सुमार,

आपका पत्र मिला। जोशी चतुर आदमी है, यह ठीक है। किन्तु मुझे इस समय यहाँ कुछ भी पैसा मिलनेकी सूरत नहीं दिखती। उमर सेठने श्री मजमूदारको[१] ठीक पैसा दे दिया था। आप भी वैसा ही कर सकते हैं। विलायत जायेंगे तो उसमें उचित खर्च करना पड़ेगा। अगर उसमें थोड़ा पैसा ज्यादा खर्च हो जाये तो हिसाब लगाना ठीक नहीं है। श्री जोशीका पत्र वापस नत्थी करता हूँ।

मो॰ क॰ गांधीके सलाम

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ २१०।

४०३. पत्र : एच॰ जे॰ हॉफमेयरको
निजी पत्र वाहक द्वारा प्रेषित

[जोहानिसबर्ग]
जून १, १९०५

सेवामें
श्री एच॰ जे॰ हॉफमेयर
जिमन्स बिल्डिग्स
जोहानिसबर्ग

प्रिय श्री हॉफमेयर,

मुझे स्वीकार करना चाहिए कि आपके पत्र से, जिसके साथ एक चैक भी है, मैं असमंजसमें पड़ गया हूँ। क्योंकि मेरा खयाल है कि इसमें एक सिद्धान्तका सवाल है। वह चैक मुझे एक खास कामके लिए दिया गया था। आप जानते हैं कि यह रुपया मेरा था। मेरे पास सईद इस्माइलका जो कुछ जमा था यह रकम उसमें से नहीं ली गई है। और इस बातको देखते हुए कि जिस जायदादको खरीदने के उद्देश्यसे यह रकम दी गई थी वह जायदाद खरीदी नहीं गई है, मेरा खयाल है कि मैं उस चैककी पूरी रकम वापस पानेका अधिकारी हूँ। मैं जानता

  1. जूनागढ़के श्री त्र्यम्बफलाल मजमूदार, इंग्लैंडमें गांधीजीके सहपाठी।