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बडौदा : एक आदर्श भारतीय रियासत

हूँ कि उसमें से आपने जो खर्च काटा है उससे मैं कुछ बरबाद नहीं हो जाऊँगा। लेकिन मैं समझता हूँ कि इससे पारस्परिक सम्बन्धोंमें वैसा विश्वास जमने में मदद नहीं मिलती जैसा व्यवसायी लोगों में होना चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि मैंने आपको जो कुछ इतनी स्पष्टवादितासे लिखा है, आप उसका खयाल न करेंगे। लेकिन मैंने सोचा, मेरे मनमें आपका चैक, पत्र और बिल देखनेपर जो विचार आये, उन्हें आपको अवश्य बता देना चाहिए। निःसन्देह मैं आपका चैक स्वीकार करता हूँ। इससे इस पत्र में मैंने जो कुछ कहा है उसका प्रभाव आपके द्वारा की गई कटौतीपर नहीं पड़ता।

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ २२०।

४०४. बड़ौदा : एक आदर्श भारतीय रियासत

सर विलियम वेडरबर्नने, जो कि भारतके अत्यन्त सच्चे मित्रोंमें से हैं, इंडियाके हालके एक अंकमें, बम्बई प्रान्तकी बड़ौदा रियासत के प्रशासनके सम्बन्धमें एक प्रशंसात्मक लेख लिखा है। इस रियासत की आबादी बीस लाख है और इसका क्षेत्रफल आठ हजार वर्गमील है। दूसरे शब्दोंमें, यह ब्रिटेनके वेल्स प्रदेशसे कुछ बड़ी है। इसके वित्त मन्त्री श्री रमेशचन्द्र दत्त[१] हैं, जो कि कभी उड़ीसाके कार्यवाहक कमिश्नर थे और जो साहित्य जगतमें एक प्रतिभाशाली लेखकके रूप में विख्यात हैं। महाराजा गायकवाड़ने, जो स्वयं भारतके सुसंस्कृत नरेशों में से हैं, अपने सलाहकार भी योग्य एकत्र किये हैं; और श्री दत्त उनमें ज्वलन्ततम नक्षत्र हैं। उनकी ही प्रकाशित प्रशासन रिपोर्ट के आधारपर सर विलियम वेडरबर्नने बड़ौदाकी प्रशंसा की है। श्री दत्तने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें भारतीय जनसाधारणकी दरिद्रता दूर करनेके विषयमें अपने विचार प्रकट किये हैं। इसका एक मुख्य उपाय उन्होंने यह सुझाया है कि कर संग्रह प्रणालीको यथासम्भव अधिक लचकीला बना दिया जाये। बड़ौदामें मन्त्रिपद स्वीकार करते ही उन्हें अपने विचारोंको अमलमें लानेकी इजाजत दे दी गई थी। अब वहाँ किसान एक निश्चित लगान केवल नकद रकमके रूपमें देनेके लिए बाध्य नहीं हैं। अब वह उसे, निश्चित नियमोंके अनुसार, नकद या जिन्स, किसी भी रूप में दे सकता है। इससे, हम फिर ब्रिटिश राज से पहलेके जमानेमें पहुँच जाते हैं, जब भारत-भरमें किसान अपनी पैदावारका एक निश्चित भाग राजाको देता था। यह लोगोंके विचारोंके अनुकूल था और दोनों पक्षोंके लिए सुविधाजनक भी। तब राजा किसानकी समृद्धिमें हिस्सा बँटाता था, और विपत्ति में उसके साथ हानि उठाता था। महाराजाके मन्त्रीने, जनताको परेशान करनेवाली छोटी-छोटी लागें भी उठा दी हैं। श्री दत्तका काम कर प्रणालीके सुधारपर ही समाप्त नहीं होता। शिक्षाके विषय में भी उनके अपने निश्चित विचार हैं। रियासतका एक उन्नत जिला, अनिवार्य शिक्षाके परीक्षण के लिए चुन लिया गया है। श्री दत्तकी रिपोर्टके अनुसार, बड़ौदामें शिक्षाकी स्थिति, ब्रिटिश भारतकी तुलना में, निम्निलिखित है :

  1. श्री रमेशचन्द्र दत्त, भारतीय सिविल सर्विसके प्रमुख सदस्य, जो १८९० में कांग्रेसके लखनऊ अधिवेशनके अध्यक्ष हुए।