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४०५. एक परोपकारी भारतीय

कुछ समयसे हमारे पास इंडियन सोशिओलॉजिस्ट नामक पत्रकी प्रतियाँ आ रही हैं। यह पत्र "स्वतंत्रताका और राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक सुधार" का समर्थक है। यह लन्दनसे प्रकाशित होता है और इसके सम्पादक हैं पंडित श्यामजी कृष्णवर्मा जो कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयके एम॰ ए॰ हैं और वहाँ अध्यापक भी रह चुके हैं। इस पत्रका सम्पादन निर्भीकतासे किया जाता है और इसके सम्पादक स्वर्गीय हर्बर्ट स्पेन्सरकी शिक्षाओंसे अनुप्राणित हैं। स्पष्ट है कि इस पत्रका लक्ष्य भारतीय विचारोंको स्पेन्सरकी शिक्षाओंके अनुसार ढालना है। पण्डितजी एक प्रसिद्ध भारतीय विद्वान् हैं, और उनके पास सम्पत्ति भी अच्छी खासी है। उन्होंने कई छात्रवृत्तियाँ आरम्भ की हैं जिससे भारतीय छात्र यूरोप और अमेरिकामें अपना स्नातकोत्तर अध्ययन जारी रख सकें। प्रत्येक छात्रवृत्ति २,००० रुपये की है और वह भारतके सभी भागोंके चुने हुए स्नातकोंको इन मुख्य शर्तोंपर दी जाती है कि उम्मीदवार यूरोप या अमेरिकामें कमसे कम दो वर्ष तक अवश्य रहेंगे और अध्ययन करेंगे एवं किसी भी अवस्थामें सरकारी नौकरी स्वीकार नहीं करेंगे। उम्मीदवारोंसे इस आशयका शर्तनामा लिखनेकी आशा की जाती है कि वे अध्ययन पूरा कर चुकनेपर इस प्रकार दी हुई रकमको सुविधाजनक किस्तों में चुका देंगे। प्रथम स्पर्धामें ये पाँच उम्मीदवार चुने गये हैं :—अब्दुल्ला-अल-महमूं सुहरावर्दी, एम॰ ए॰, शरद्चन्द्र मुखर्जी, एम॰ ए॰, परमेश्वरलाल, एम॰ ए॰, सैयद अब्दुल मजीद, बी॰ ए॰, और शेख अब्दुल अजीज, बी॰ ए॰। यह प्रयोग अति साहसपूर्ण है। दानी व्यक्तिके उद्देश्य देशभक्तिपूर्ण हैं। परन्तु इस प्रयोगकी सफलता बहुत कुछ इस बातपर निर्भर करती है कि प्रथम छात्र इस अवसरका उपयोग कैसे करते हैं। उनकी शिक्षा-सम्बन्धी योग्यताएँ तो सुखद परिणामकी सूचक हैं। हम पण्डित श्यामजी कृष्ण वर्माके प्रयत्नकी पूर्ण सफलताकी कामना करते हैं। दक्षिण आफ्रिका और अन्य स्थानोंके भारतीय व्यापारी भी उनके उदाहरणका अनुकरण बखूबी कर सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-६-१९०५