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४०६. श्री गांधीकी टिप्पणियाँ[१]

उपर्युक्त पत्रको पढ़कर मुझे बहुत दुःख हुआ है। मैंने वही लिखा है जिसे मैंने सत्य माना है। फिर भी, मुझे मालूम हुआ है कि कुछ लोग मेरे कथनसे अप्रसन्न हुए हैं। उसके लिए मुझे खेद है और मैं उनसे क्षमा माँगता हूँ। चूँकि मैं इस विवादको बढ़ाना नहीं चाहता, इसलिए मैं इस पत्रका उत्तर कुछ भी विस्तारसे देना ठीक नहीं समझता। मैंने इस्लामकी निन्दा करनेका प्रयत्न नहीं किया है और न मैं उसे नीचा ही मानता हूँ। मैं नहीं समझता हूँ कि जब मैंने वह भाषण दिया था तब किसी व्यक्तिके मस्तिष्कपर ऐसा प्रभाव पड़ा होगा।

मो॰ क॰ गांधी

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-६-१९०५

४०७. जोहानिसबर्ग में चेचक

यह रोग जोहानिसबर्ग में फूट निकला है; लेकिन सौभाग्यसे अधिक फैला नहीं है। हुसनमल नामका एक भारतीय मलायी बस्तीमें रहता है। उसके घरमें एक लड़केको चेचकका रोग हो गया था। उसने इसकी खबर अधिकारियोंको नहीं दी और जब अधिकारियोंने पूछताछ की तब उसने सही-सही बात नहीं बताई। इस वजह से उसपर मुकदमा चलाया गया और १० पौंड जुर्माना किया गया। इस उदाहरणसे हम लोगोंको सबक लेना चाहिए। रोगको छिपानेसे कुछ भी लाभ नहीं, अपितु बहुत हानि है‌। केवल छिपानेवाला ही उसकी सजा भुगतता है, यह बात नहीं है; बल्कि वह सारी कौमको भुगतनी पड़ती है। चेचक छूत लगनेसे फैलती है, इसमें कोई शक नहीं। हजारों मनुष्य इससे दुःखी होते हैं, यह हम जानते हैं। इसलिए स्वयं अपनी तन्दुरुस्ती कायम रखनेके लिए भी हमें सँभल कर रहना आवश्यक है। फिर, दक्षिण आफ्रिकामें सँभलकर रहनेकी और भी ज्यादा जरूरत है क्योंकि हममें से किसी से भी भूल हो जाये तो उससे पूरी कौमको उलाहना मिलता है और सारी कौमके सामने बाधाएँ आती हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-६-१९०५
  1. श्री गांधीके उत्तरके बाद (देखिए "श्री गांधीका स्पष्टीकरण" १३-५-१९०५) इंडियन ओपिनियनके सम्पादकको दो विरोध-सूचक पत्र प्राप्त हुए। उनमें से एक पत्रमें, जिसपर "एक मुसलमान" के दस्तखत हैं, यह दावा किया गया है कि. . ."लगभग एक लाख बोहरे मुसलमानोंके, जिनकी समाजमें अच्छी प्रतिष्ठा है, पुरखे सिद्धपुरके ब्राह्मण पुरोहित थे। इसके अतिरिक्त मध्य गुजरातके सुन्नी बोहरोंके पुरखे बनिया थे। इस प्रकार यह सिद्ध किया जा सकता है कि उच्च श्रेणियों में से भी कुछ लोग मुसलमान बने थे।" गांधीजीका उपर्युक्त उत्तर इसी सम्बन्धमें है।